जैव प्रक्रम: पोषण जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 Question Answer

Prabhakar
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Biology Class 10th Chapter 1
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जैव प्रक्रम: पोषण जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 Question Answer: Introduction

This article contains all VVI Question Answers (subjective) from Class 10th Biology Chapter-1 “Life Processes: Nutrition”. These questions are of short-answer and long-answer type.


प्रिय विद्यार्थियों, बिहार बोर्ड जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 प्रश्न उत्तर के अन्तर्गत प्रकाशित इन सभी महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को पढ़-पढ़ कर याद करने का प्रयास करें। याद हो जाने के पश्चात् इन्हें अपने नोटबुक में लिखना न भूलें।

तो चलिए आज हम सबसे पहले जैव प्रक्रम: पोषण अध्याय के लघु उत्तरीय प्रश्नों को पढ़ते हैं और तत्पश्चात दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को भी पढ़ कर याद करने का प्रयास करेंगे।


Class 10th Biology Chapter 1 Question Answer (Short Answer Type)

In the annual board examination of Science subject, 8 short answer type questions are asked in Biology section, in which at least 1 question from the chapter “Life Processes: Nutrition” is definitely included. Out of these 8 questions, only 4 questions have to be answered and 2 marks are fixed for each of these questions.


जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 Question Answer


1. सजीवों के मुख्य चार लक्षण लिखें।
उत्तर:- सजीवों के मुख्य चार लक्षण निम्नलिखित हैं :
(i) साँस लेना, (ii) भोजन ग्रहण करना, (iii) वर्ज्य पदार्थों का त्याग करना और (iv) अपने सदृश जीवों की उत्पत्ति करना।

2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
उत्तर:- कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम वस्तु में अति सूक्ष्म स्केल पर होने वाली आण्विक गतियों की उपस्थिति के मापदंड का उपयोग करेंगे। क्योंकि सजीवों के सामान्य लक्षण जैसे– साँस लेना, भोजन ग्रहण करना, गति करना, वंश वृद्धि करना आदि, सभी सजीवों में समान रूप से परिलक्षित नहीं होते हैं।

3. जीवन के लिए आण्विक गतियाँ क्यों आवश्यक है?
उत्तर:- जीवों के संरचना को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित बनाए रखने के लिए अनुरक्षण का कार्य निरंतर होना चाहिए। चूँकि ये सभी संरचनाएँ मूलतः अणुओं से बनी होती है। इसलिए इन अणुओं को लगातार गतिशील होना चाहिए। इसी कारण से जीवन के लिए आण्विक गतियाँ आवश्यक है।

4. अनुरक्षण क्या है? अनुरक्षण के लिए कौन-कौन-सी क्रियाएँ आवश्यक हैं?
उत्तर:- जिस प्रक्रिया के द्वारा सजीवों में क्षति एवं टूट-फूट रोक कर इसकी संरचना को सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित बनाया रखा जाता है, उसे अनुरक्षण कहा जाता है। सजीवों में अनुरक्षण के लिए पोषण, श्वसन, परिवहन एवं उत्सर्जन क्रियाएँ आवश्यक है।

जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 प्रश्न उत्तर


5. जैव प्रक्रम किसे कहते हैं? सजीवों के लिए कौन-से जैव प्रक्रम अनिवार्य है?
उत्तर:- वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से जीवों में अनुरक्षण का कार्य करते हैं, उन्हें जैव प्रक्रम कहते हैं। सजीवों के लिए पोषण, श्वसन, परिवहन एवं उत्सर्जन; ये सभी जैव प्रक्रम अनिवार्य है।

6. पोषण की परिभाषा दें।
उत्तर:- सजीवों द्वारा ऊर्जा प्राप्ति के लिए खाद्य पदार्थों या पोषक तत्त्वों को ग्रहण करने का प्रक्रम पोषण कहलाता है। जीवों में पोषण दो प्रकार से होता है – (i) स्वपोषी पोषण और (ii) विषमपोषी पोषण।

7. जीवों के लिए पोषण क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:- सजीवों में क्षति एवं टूट-फूट रोकने के लिए अनुरक्षण प्रक्रम की आवश्यकता होती है। इसके लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसी आवश्यकता को पूरी करने के लिए जीवों के लिए खाद्य पदार्थों का ग्रहण करना अर्थात पोषण प्रक्रम अनिवार्य है।

8. किसी जीव द्वारा पोषण के लिए किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:- किसी जीव द्वारा खाद्य पदार्थों के रूप में अधिकांशतः कार्बन आधारित कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड (पौधों द्वारा), जल एवं अनेक खनिज पदार्थों का उपयोग किया जाता है।

9. स्वपोषी पोषण से क्या समझते हैं?
उत्तर:- पोषण की वह प्रक्रिया, जिसमें जीव भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं, उसे स्वपोषी पोषण कहते हैं। पौधों, कुछ जीवाणुओं और प्रोटोजोआ आदि में स्वपोषी पोषण पाया जाता है।

10. पौधों एवं इनकी पत्तियों का रंग हरा क्यों होता है?
अथवा, क्लोरोफिल क्या है?
उत्तर:- सभी हरे पौधों में हरितलवक (क्लोरोप्लास्ट) उपस्थित होता है। क्लोरोप्लास्ट में हरे रंग का एक वर्णक पाया जाता है जिसे क्लोरोफिल कहा जाता है। यह सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करने का कार्य करता है। क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण ही पौधों एवं इनकी पत्तियों का रंग हरा होता है।

11. प्रकाश संश्लेषण क्या है? इस क्रिया का रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर:- पौधे सूर्य के प्रकाश एवं क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल की सहायता से कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। इसके साथ ही उपोत्पाद के रूप में ऑक्सीजन एवं जल निर्मित होता है। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण क्रिया का रासायनिक समीकरण –
प्रकाश संश्लेषण क्रिया का रासायनिक समीकरण

12. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी है और उसके उपोत्पाद क्या है?
उत्तर:- स्वपोषी पोषण केवल हरे पौधों एवं कुछ जीवाणुओं में पाया जाता है। इसके आवश्यक परिस्थितियाँ निम्नलिखित है –
(i) क्लोरोफिल की उपस्थिति,
(ii) जड़ों द्वारा जल तथा खनिज पदार्थों का अवशोषण,
(iii) पत्तियों द्वारा वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड गैस तथा सूर्य से प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण।

जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 के महत्वपूर्ण प्रश्न


13. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया क्लोरोप्लास्ट में ही क्यों होती है?
उत्तर:- क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल नामक एक हरा वर्णक पाया जाता है। इस क्लोरोफिल में ही प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करने का गुण होता है। इसलिए प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया क्लोरोप्लास्ट में ही होती है।

14. प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से लिखें।
उत्तर:- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान निम्नलिखित चरणबद्ध घटनाएँ होती है–
(i) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना।
(ii) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।
(iii) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।

15. प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधे कहाँ से प्राप्त करते हैं?
उत्तर:- पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए कच्ची सामग्री के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड गैस, जल एवं खनिज पदार्थ का उपयोग करते हैं। पौधे पत्तियों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड गैस को पृथ्वी के वायुमंडल से ग्रहण करते है। पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करता है। इसके अलावा पौधे जल और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा तथा मैग्नीशियम जैसे खनिज पदार्थों को अपने जड़ों द्वारा मिट्टी से अवशोषित करते हैं।

16. विषमपोषी पोषण से आप क्या समझते हो?
उत्तर:- पोषण की वह प्रक्रिया, जिसमें जीव अपने भोजन के लिए किसी-न-किसी दुसरे जीव पर निर्भर रहते हैं, उसे विषमपोषी पोषण या परपोषी पोषण कहते हैं। यह मनुष्यों, जंतुओं, पक्षियों, कवकों आदि में पाया जाता है।

17. मृतजीवी पोषण क्या है?
उत्तर:- कुछ जीव मरे हुए पौधों और जंतुओं के शरीर को वातावरण में ही विघटित कर देते हैं। तब उससे अपना भोजन घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं। इस प्रकार का पोषण मृतजीवी पोषण कहलाता है और ऐसे जीव मृतजीवी कहलाते हैं। फँफूदी, यीस्ट, मशरूम आदि मृतजीवियों के उदाहरण हैं।

18. परजीवी अपना पोषण किस प्रकार से प्राप्त करते हैं?
उत्तर:- परजीवी पौधों और जंतुओं के संपर्क में रह कर उन्हें बिना मारे उनसे अपना पोषण प्राप्त करते हैं। इस प्रकार का पोषण परजीवी पोषण कहलाता है। अमरबेल, किलनी, जूँ, गोलकृमि आदि परजीवियों के उदाहरण हैं।

19. कवक में पोषण किस प्रकार से होता है?
उत्तर:- कवक में मृतजीवी पोषण पाया जाता है। ये भोज्य पदार्थों का विघटन शरीर के बाहर ही कर देते हैं और तब उसका अवशोषण करते हैं।

20. अमीबा में पोषण की विधि को चित्र के साथ समझाइए।
उत्तर:- अमीबा में पोषण अन्तर्ग्रहण प्रक्रिया द्वारा होता है। अमीबा कोशिकीय सतह से कूटपादों की मदद से भोजन ग्रहण करता है। यह कूटपाद भोजन के कणों को घेर लेते हैं तथा संगलित होकर खाद्य रिक्तिका बनाते हैं। इसी खाद्य रिक्तिका के अंदर खाद्य पदार्थों का पाचन होता है। अपच पदार्थ को कोशिकीय सतह की ओर ले जाया जाता है और शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है। अमीबा में पोषण की यह विधि एन्डोसाइटिसिस कहलाती है।
अमीबा में पोषण की विधि

Biology Class 10 Chapter 1 Question Answer


21. पैरामीशियम में भोजन कैसे पहुँचता है?
उत्तर:- पैरामीशियम एककोशिकीय जीव है। इसमें भोजन एक विशिष्ट स्थान से ग्रहण किया जाता है। पैरामीशियम के चारों ओर पक्ष्माभ (सीलिया) लगे होते हैं। इन्हीं पक्ष्माभों की सहायता से पैरामीशियम में भोजन पहुँचता है।

22. एंजाइम क्या होते हैं?
उत्तर:- सभी विषमपोषी जीव जटिल अघुलनशील पदार्थों को सरल घुलनशील पदार्थों में परिवर्तित करने के लिए जैव-उत्प्रेरकों का उपयोग करते हैं, जिन्हें एंजाइम कहा जाता है।

23. मनुष्य में कितने प्रकार के दाँत होते हैं? उनके नाम तथा कार्य लिखिए।
उत्तर:- मनुष्य में चार प्रकार के दाँत होते हैं। इनके नाम तथा कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) कर्तनक (इनसाइजर): ये भोजन के बड़े टुकड़ों को काट कर छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटते है।
(ii) भेदक (कैनाइन): इनका मुख्य कार्य भोजन को फाड़ना है।
(iii) अग्र चवर्णक (प्रीमोलर): ये भोजन को चबाते हैं और छोटे-छोटे टुकड़ों में पीस लेते हैं।
(iv) चवर्णक (मोलर): इनका कार्य भोजन को चबाना है।

24. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर:- लार मुखगुहा में स्थित लाला ग्रंथि से निकलने वाला एक रस है जिसे लाला रस भी कहा जाता है। लार में एमाइलेज नामक एंजाइम पाया जाता है। यह जटिल मंड के अणुओं को शर्करा में खंडित कर देता है। इस प्रकार लार द्वारा भोजन का प्रथम पाचन होता है।

25. स्वाद कलिकाएँ क्या हैं?
उत्तर:- हमारी जीभ की ऊपरी सतह पर कई छोटे-छोटे अंकुर (papillae) जाते हैं जो हमें मीठा, नमकीन, खट्टा और कड़वा स्वादों को समझने में मदद करती हैं। इन्हें स्वाद कलिकाएँ कहते हैं।

26. आमाशय में पाचक रस की क्या भूमिका है?
उत्तर:- आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियाँ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, श्लेष्मा और निष्क्रिय पेप्सिनोजेन का स्त्राव करती हैं। इन तीनों का सम्मिलित रूप जठर रस या पाचक रस कहलाता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निष्क्रिय पेप्सिनोजेन को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है, जो प्रोटीन का पाचन करता है। इसके अलावा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल जीवाणुनाशी का भी कार्य करता है। श्लेष्मा आमाशय की आंतरिक दीवारों को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं पेप्सिन एंजाइम से सुरक्षित रखता है।

27. हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर:- हमारे आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियाँ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, श्लेष्मा और निष्क्रिय पेप्सिनोजेन का स्त्राव करती हैं। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निष्क्रिय पेप्सिनोजेन को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है, जो प्रोटीन का पाचन करता है। इसके अलावा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल जीवाणुनाशी का भी कार्य करता है।

जैव प्रक्रम पोषण क्लास 10th Question Answer


28. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को किस प्रकार अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर:- पचा हुआ भोजन क्षुद्रांत्र में अवशोषित होता है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अनेक अंगुलीनुमा दीर्घरोम होते हैं। ये अवशोषण के लिए क्षेत्रफल को बढ़ा देते हैं। यह अवशोषित भोजन दीर्घरोम में उपस्थित रूधिर वाहिकाओं द्वारा शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचा दिया जाता है।

29. पित्त क्या है? मनुष्य के पाचन में इसका क्या महत्व है?
उत्तर:- पित्त गाढ़ा एवं हरा रंग का क्षारीय द्रव है। मनुष्य के पाचन-तंत्र में इसका विशेष महत्व है। यह अमाशय से छोटी आंत में आए भोजन को क्षारीय बनाता है और एंजाइमों को इन पर क्रिया करने में मदद करता है। यह भोजन के वसा का विखंडन एवं पायसीकरण करता है।

30. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर:- हमारे शरीर में वसा का पाचन अग्न्याशय द्वारा स्त्रावित लाइपेज एंजाइम द्वारा छोटी आंत में होता है। लाइपेज एंजाइम इमल्सीकृत वसा पर क्रिया करके इसे वसा अम्ल एवं ग्लिसरॉल में परिवर्तित करता है।

31. माँसाहारियों की छोटी आंत और शाकाहारियों की छोटी आंत में क्या अंतर है?
उत्तर:- विभिन्न जंतुओं में छोटी आंत की लंबाई उनके भोजन के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होती है। घास में उपस्थित सेल्यूलोज के पाचन के लिए लंबी छोटी आंत की आवश्यकता होती है जबकि माँस का पाचन सरल है और इसके पाचन के लिए लंबी छोटी आंत की आवश्यकता नहीं है। इसलिए माँसाहारियों की छोटी आंत की अपेक्षा शाकाहारियों की छोटी आंत की लंबाई अधिक होती है।

32. मनुष्य में छोटी आंत कितने भागों में बँटी होती है और कौन-कौन?
उत्तर:- मनुष्य में छोटी आंत तीन भागों में बँटी होती है। ये तीन भाग हैं – ग्रहणी, जेजुनम और इलियम। भोजन का अंतिम रूप से पाचन और पचे हुए भोजन का अवशोषण इलियम में ही होता है।

33. पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है?
उत्तर:- छोटी आंत की दीवार में कई ग्रंथियाँ होती है जो आंत्र रस स्त्रावित करती है। इसमें उपस्थित एंजाइम पाचक एंजाइम कहलाते है। ये पाचक एंजाइम प्रोटीन को अमीनो अम्ल में, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में और वसा को वसा अम्ल एवं ग्लिसरॉल में परिवर्तित करते हैं। इस प्रकार भोजन के पाचन की क्रिया पूर्ण होती है।
अथवा,
उत्तर:- छोटी आंत की दीवार में उपस्थित ग्रंथियाँ आंत्र रस का स्त्राव करती है। इसमें उपस्थित एंजाइम पाचक एंजाइम कहलाते है। ये पाचक एंजाइम भोजन पर क्रिया करके भोजन के जटिल अघुलनशील अणु को सरल घुलनशील अणु में परिवर्तित करते हैं। इस प्रकार पाचन की क्रिया पूर्ण होती है।
नोट – उपरोक्त दोनों उत्तर सही है। कोई भी एक याद करें।

34. दीर्घ रोम क्या है? इसके कार्य लिखें।
उत्तर:- क्षुद्रांत्र (छोटी आंत) के आंतरिक आस्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं। ये भोजन के अवशोषण में मदद करते हैं। दीर्घरोम में अनेक रुधिर वाहिकाएँ होती है, जो भोजन को अवशोषित कर उसे शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं। दीर्घ रोम बड़ी आंत में भी पाये जाते हैं, जहाँ वे अतिरिक्त जल का अवशोषण करते हैं।

35. स्वयंपोषी पोषण और विषमपोषी पोषण में क्या अंतर है ‌?
उत्तर:- स्वयंपोषी पोषण और विषमपोषी पोषण में निम्नलिखित अंतर है –
(i) स्वयंपोषी पोषण में जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं जबकि विषमपोषी पोषण में जीव अपना भोजन अन्य स्त्रोतों से प्राप्त करते हैं।
(ii) स्वयंपोषी पोषण के लिए सूर्य का प्रकाश एवं क्लोरोफिल आवश्यक है जबकि विषमपोषी पोषण के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं है।

यहाँ पर जैव प्रक्रम: पोषण अध्याय के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर समाप्त हुआ। आशा है कि आप इन सभी प्रश्नों को समझ गए होंगे और याद भी कर लिए होंगे। इन्हें अपने नोटबुक में लिखने का प्रयास करें।

अब हम जैव प्रक्रम: पोषण अध्याय के महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे।


Class 10 Biology Chapter 1 Question Answer (Long Answer Type)

In the annual board examination of Science subject, 2 long answer type questions are asked in Biology section, in which 1 question may be from the chapter “Life Processes: Nutrition”. Out of these 2 questions, only 1 question has to be answered and 5 marks are fixed for each of these questions.


जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 नोट्स


1. जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता क्यों होती हैं? पाँच कारण लिखिए।
उत्तर:- अपने जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए प्रत्येक जीव को पोषण की आवश्यकता होती है। जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता के पाँच कारण निम्नलिखित हैं –
(i) आंतरिक क्षति के अनुरक्षण के लिए, सजीवों के शरीर में समय-समय पर पुरानी कोशिकाएँ नष्ट होती रहती हैं और इनके स्थान पर नये कोशिकाएँ आ जाती हैं। इन नयी कोशिकाओं के निर्माण के लिए पोषण आवश्यक है।
(ii) जीवधारियों को ऐच्छिक एवं अनैच्छिक क्रियाओं के संपादन और सभी प्रकार के शारीरिक वृद्धि के लिए भी पोषण की आवश्यकता होती है।
(iii) कभी-कभी जीवधारियों के शरीर में बाह्य रूप से क्षति एवं टूट-फूट हो जाती है। इसके अनुरक्षण के लिए पोषण आवश्यक होती है।
(iv) जीवधारियों के बीमार पड़ने पर रोगाणुओं से प्रतिरक्षण के लिए भी पोषण आवश्यक होता है।
(v) जीवधारियों को दैनिक कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा उन्हें पोषण द्वारा प्राप्त होती है।

2. पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन नामांकन के साथ करें।
उत्तर:- पौधे सूर्य के प्रकाश एवं क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल की सहायता से कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। इसके साथ ही उपोत्पाद के रूप में ऑक्सीजन एवं जल निर्मित होता है। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। सभी स्वपोषी जीवों में कार्बन तथा ऊर्जा संबंधी आवश्यकताएँ प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा पूरी होती है।
पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया

पौधे पत्तियों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड गैस को पृथ्वी के वायुमंडल से ग्रहण करते है। पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करता है। इसके अलावा पौधे जल और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा तथा मैग्नीशियम जैसे खनिज पदार्थों को अपने जड़ों द्वारा मिट्टी से अवशोषित करते हैं। प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है जो जल अणुओं को हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटित कर देता है। कार्बन डाइऑक्साइड कार्बोहाइड्रेट में अपचयित होता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया का रासायनिक समीकरण निम्नलिखित है –
प्रकाश संश्लेषण क्रिया का रासायनिक समीकरण

3. एक प्रयोग द्वारा दर्शाएँ कि प्रकाश संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।
उत्तर:- एक गमले में लगा क्रोटन का पौधा लेते हैं, जिसकी पत्तियाँ आंशिक रूप से हरी और आंशिक रूप से सफेद होती है। पत्ती के हरे भाग में क्लोरोफिल उपस्थित होता है जबकि सफेद भाग में क्लोरोफिल नहीं होता है।
प्रयोग –
  • इस क्रोटन के पौधे को 3 दिन तक अँधेरे कमरे में रखते हैं, जिससे इसकी पत्तियों में उपस्थित संपूर्ण स्टार्च प्रयुक्त हो जाए।
  • अब इस पौधे को 6 घंटे तक कड़ी धूप में रखते हैं।
  • पौधे से एक पत्ती को तोड़ते हैं और इसके हरे भाग को एक कागज पर अंकित कर लेते हैं।
  • कुछ देर के लिए इस पत्ती को पानी में उबाल लेते हैं।
  • अब इस पत्ती को बाहर निकाल कर ऐल्कोहॉल में उबालते हैं।
  • ऐल्कोहॉल में उबालने के बाद इस पत्ती को बाहर निकाल लेते हैं। हम देखते हैं कि पत्ती रंगहीन हो गई है।
  • इसके बाद कुछ मिनट के लिए इस पत्ती को आयोडीन के तनु विलियन में डाल लेते हैं।
  • अब पत्ती को आयोडीन विलियन से बाहर निकाल कर धो लेते हैं।
  • पत्ती के रंग का अवलोकन करने पर हम पाते हैं कि पत्ती के जिस हरे भाग को हमने कागज पर अंकित किया था, वह नीला-काला रंग का हो गया है जबकि सफेद रंग वाला भाग नीला-काला रंग का नहीं होता। यह दर्शाता है कि पत्ती के हरे भागों में स्टार्च उपलब्ध है।
  • इस प्रेक्षण से हम निष्कर्ष निकालते हैं कि स्टार्च बनाने के लिए प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।

Life Processes: Nutrition Question Answer


4. प्रकाश संश्लेषण के लिए पौधों को सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है। प्रयोग द्वारा समझाइए।
उत्तर:- प्रकाश संश्लेषण के लिए पौधों को सूर्य की रोशनी की आवश्यकता दर्शाने के लिए प्रयोग:–
  • लगभग समान आकार के गमले में लगे दो पौधे लेते है।
  • लगभग पाँच घंटे के लिए इनमें से एक पौधे को अँधेरे कमरे में और एक पौधे को सूर्य के प्रकाश में रखते है।
  • अब दोनों पौधों से एक-एक पत्ती तोड़ लेते हैं।
  • फिर दोनों पत्तियों को अलग-अलग ऐल्कोहॉल में उबालते हैं।
  • अब कुछ मिनट के लिए दोनों पत्तियों को अलग-अलग आयोडीन के तनु विलियन में डालते हैं और इनके के रंग का प्रेक्षण करते हैं।
  • हम पाते हैं कि जिस पौधे को हमने अँधेरे कमरे में रखा था, उसकी पत्ती कम नीली-काली होती है। अर्थात इसमें स्टार्च कम बनता है। जबकि दुसरे पौधे, जिसे सूर्य के प्रकाश में रखा गया था, उसकी पत्ती अपेक्षाकृत अधिक नीली-काली होती है। अर्थात इसमें स्टार्च अधिक बनता है।
  • इस प्रयोग द्वारा निष्कर्ष निकलता है कि प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए पौधों के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक है।

5. प्रयोग द्वारा दर्शाएँ कि प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड गैस आवश्यक है।
उत्तर:- प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड गैस की आवश्यकता दर्शाने के लिए प्रयोग:–
  • लगभग समान आकार के गमले में लगे दो पौधे लेते है।
  • इन्हें तीन दिन तक अँधेरे कमरे में रखते है।
  • अब दोनों पौधों को वायुरोधित काँच के जार में रखते है। इनमें से एक पौधे के पास जार में पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड रखते है। इससे जार के अन्दर की सभी कार्बन डाइऑक्साइड गैस अवशोषित हो जाती है।
  • लगभग दो घंटे के लिए इन पौधों को सूर्य के प्रकाश में रखते हैं।
  • अब दोनों पौधों से एक-एक पत्ती तोड़ते हैं।
  • फिर दोनों पत्तियों को अलग-अलग ऐल्कोहॉल में उबालकर आयोडीन के तनु विलियन में डालते हैं और पत्तियों के रंग का प्रेक्षण करते हैं।
  • हम पाते हैं कि जिस पौधे के साथ हमने पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड रखा था, उसकी पत्ती कम नीली-काली होती है। अर्थात इसमें स्टार्च कम बनता है। जबकि दुसरे पौधे की पत्ती अपेक्षाकृत अधिक नीली-काली होती है। अर्थात इसमें स्टार्च अधिक बनता है।
  • इस प्रयोग द्वारा निष्कर्ष निकलता है कि प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए कार्बन डाइऑक्साइड गैस आवश्यक है।

जीव विज्ञान कक्षा 10 अध्याय 1 नोट्स PDF


6. प्रायोगिक विवरण द्वारा बताएँ कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।
उत्तर:- निम्नलिखित प्रयोग द्वारा हम दर्शा सकते हैं कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।
प्रयोग –
  • एक जलीय पौधा हाइड्रिला की कुछ टहनियाँ तोड़कर उन्हें जल से भरे एक बीकर में कीप के अंदर चित्र अनुसार रखते है।
  • कीप के ऊपर जल से भरे एक परखनली को सावधानीपूर्वक उल्टा रखते है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है
  • अब इस पूरे समायोजन को खुले धूप में रखते है। हम पाते है कि पत्तियों के पास से गैस के बुलबुले उठते हैं जो परखनली में जाते हैं। परखनली के जल का स्तर नीचे गिरता जाता है।
  • कुछ देर बाद परखनली की गैस का परीक्षण करने पर पाते है कि यह गैस ऑक्सीजन है।

7. मनुष्य के आहार नाल का एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाएँ।
उत्तर:- मानव के आहार नाल का नामांकित चित्र निम्नलिखित है:
मनुष्य के आहार नाल का एक स्वच्छ नामांकित चित्र
Creator: Sameer Kumar, Class-X (2022-23)

जैव प्रक्रम : पोषण क्लास 10th pdf


8. मानव पाचन तंत्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाकर पाचन क्रिया को समझाइए।
उत्तर:- मनुष्य में पाचन क्रिया मुखगुहा से प्रारंभ होती है तथा छोटी आंत में समाप्त होती है। भोजन मुँह में दाँत तथा जीभ की मदद से पिसकर महीन हो जाता है। यहाँ लार-मंथियों से लार निकलकर भोजन में मिलता रहता है। लार में उपस्थित टायलीन एंजाइम भोजन के स्टार्थ को माल्टोस में बदल देता है। इस प्रकार मुखगुहा में भोजन का पाचन प्रारंभ होता है। इसके बाद भोजन ग्रासनली से होता हुआ आमाशय में आ जाता है। आमाशय की भीतरी सतह पर उपस्थित जठर ग्रंथियों से जठर रस का स्राव होता है। इसके स्त्राव में मुख्यतः तीन प्रकार के पदार्थ पाए जाते है – हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, श्लेष्मा और निष्क्रिय पेप्सिनोजेन।
मानव पाचन तंत्र का स्वच्छ नामांकित चित्र

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निष्क्रिय पेप्सिनोजेन को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है, जो प्रोटीन का पाचन करता है। इसके अलावा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन के साथ आये जीवाणुओं को भी नष्ट करने का कार्य करता है। आमाशय में प्रोटीन के अलावा वसा का भी पाचन प्रारंभ होता है। यहाँ वसा का आशिक पाचन गैस्ट्रिक लाइपेज नामक एंजाइम से होता है। आमाशय में भोजन का स्वरूप गाढ़े लेई की तरह हो जाता है, जिसे काइम कहते है। काइम अब छोटी आँत में पहुँचता है। छोटी आँत आहारनाल का सबसे लंबा भाग होती है। इसके तीन भाग होते हैं- ग्रहणी, जेजुनम तथा इलियम। ग्रहणी में भोजन के साथ पित्त, अग्न्याशयी रस तथा इंसुलिन आकर मिलते हैं। ये सभी भोजन के पाचन क्रिया में मदद करते हैं। अग्न्याशयी रस में उपस्थित एमाइलेज एंजाइम स्टार्च को माल्टोस में, लाइपेज एंजाइम वसा को अम्ल एवं ग्लिसरॉल में तथा ट्रिप्सिन एंजाइम प्रोटीन को ऐमीनो अम्ल में परिवर्तित कर देता है। छोटी आँत में भोजन के पाचन के उपरांत पचे भोजन का अवशोषण इलियम के विलाई द्वारा होता है। अपचा भोजन इलियम से बड़ी आँत में आता है। यहाँ अपचे भोजन से अतिरिक्त जल का अवशोषण होता है तथा अंत में अपचा भोजन मल के रूप में अस्थायी तौर पर रेक्टम में संचित रहता है जो समय-समय पर मलद्वार के रास्ते शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
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