
नीतिश्लोकाः पाठ का अर्थ Class 10 Sanskrit Chapter 7 Question Answer and Notes : Introduction
This article contains all VVI Question Answers (2 marks each) from Class 10th Sanskrit book “Piyusham Part-2” Chapter 7 “Nitishlokah”. This also contains the hindi meaning of the Nitishlokah chapter.
प्रिय विद्यार्थियों, बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत पाठ 7 प्रश्न उत्तर को पढ़ने से पहले आपको नीतिश्लोकाः पाठ का अर्थ जानना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इस पाठ को हिन्दी में पढ़ने के पश्चात् ही आप इसमें लिखी बातों को अधिक आसानी से याद कर पाएँगे।
इसलिए आज हम सबसे पहले नीतिश्लोकाः पाठ का अर्थ हिन्दी में पढ़ेंगे और तत्पश्चात इस पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर को भी पढ़ कर याद करने का प्रयास करेंगे।
नीतिश्लोकाः पाठ का अर्थ (हिन्दी में)
संस्कृत विषय तब तक कठिन लगता हैं जब तक कि उसका हिन्दी अनुवाद हमें पता नहीं रहता। किसी भी पाठ का हिन्दी में अनुवाद करते ही वह हमें बहुत रोचक लगने लगता है। नीतिश्लोकाः पाठ में महात्मा विदुर की रचना विदुर नीति से 10 श्लोकों का संकलन किया गया है। इस पाठ के अध्ययन से हमें अनेक सीख मिलती है। यहाँ हम नीतिश्लोकाः पाठ का हिन्दी अनुवाद पढ़ते समय सभी श्लोकों के अर्थ को भी समझेंगे। परंतु इन सबसे पहले नीतिश्लोकाः पाठ से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त करते हैं।
कक्षा 10 संस्कृत पाठ 7 नोट्स
- ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ महाभारत ग्रंथ के उद्योगपर्व से संकलित है।
- सुप्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत के उद्योगपर्व का विशेष भाग (अध्याय 33 से 40) विदुर नीति के रूप संकलित हैं।
- विदुरनीति महाभारत ग्रंथ के उद्योगपर्व का अंश है और इसमें आठ अध्याय है।
- ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ विदुरनीति ग्रंथ से संकलित है।
- विदुरनीति महात्मा विदुर के नीतियों का संग्रह है। अतः विदुरनीति के रचनाकार महात्मा विदुर है।
- महात्मा विदुर धृतराष्ट्र के मंत्री थे।
- महाभारत युद्ध को निकट जानकार धृतराष्ट्र अपने चित्त की शांति के लिए विदुर जी से प्रश्न पूछते है, जिसके उत्तर विदुरजी देते हैं। इसी प्रश्नोत्तरी के रूप में ‘विदुर नीति’ ग्रंथ है।
- ‘विदुर नीति’ भी भगवद् गीता के समान महाभारत से स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में विद्यमान है।
कक्षा 10 संस्कृत पाठ 7 नीतिश्लोकाः का हिन्दी अनुवाद
‘नीतिश्लोकाः’ पाठ में कुल दस श्लोक हैं। नीचे सभी दस श्लोकों का हिन्दी अनुवाद बताया गया है और संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी दी गई है।
नीतिश्लोकाः पाठ का पहला श्लोक यस्य कृत्यं न ..... का हिन्दी अर्थ
समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ।।
भावार्थ: जिसके कार्यों में सर्दी-गर्मी, भय-आनन्द, समृद्धि-असमृद्धि कोई बाधा नहीं डालते है, वही पण्डित कहलाता है।
- पण्डित के कार्यों में सर्दी-गर्मी, भय-आनन्द, समृद्धि-असमृद्धि कोई बाधा नहीं डालते है।
- विद्वान पुरुष सर्दी-गर्मी, भय-आनन्द, लाभ-हानि से न तो बहुत ज्यादा उत्तेजित होता है और न ही शोकाकुल।
- पण्डित (विद्वान) अपने निर्धारित कार्य को अबाध रूप से करता रहता है।
नीतिश्लोकाः पाठ का दुसरा श्लोक तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां ..... का अर्थ
उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ॥
भावार्थ: जो सभी जीवों के रहस्य को जानता है, सभी कर्मों के कौशल को जानता है और मनुष्यों के सभी उपायों को जानता है, उसे ही पण्डित कहा गया है।
- पण्डित (विद्वान) सभी जीवों के रहस्य को जानता है।
- पण्डित (विद्वान) सभी कर्मों के कौशल को जानता है।
- पण्डित (विद्वान) मनुष्यों के सभी उपायों को जानता है।
नीतिश्लोकाः पाठ का तीसरा श्लोक अनाहूतः प्रविशति ..... का अर्थ
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः॥
भावार्थ: जो मनुष्य बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना पूछे बहुत बोलता है और अविश्वासियों पर विश्वास करता है, उसे मूर्ख और मनुष्यों में नीच (अधम) कहा जाता है।
- मूर्ख और नीच (अधम) बिना बुलाए ही किसी के यहाँ जाता है।
- मूर्ख और नीच (अधम) मनुष्य बिना पूछे बहुत बोलता है।
- मूर्ख और नीच (अधम) मनुष्य अविश्वासियों पर विश्वास करता है
नीतिश्लोकाः पाठ का चौथा श्लोक एको धर्मः परं ..... का अर्थ
विद्यैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा।।
भावार्थ: एक धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है। क्षमा ही उत्तम शांति है। विद्या ही परम तृप्ति है। अहिंसा ही परम सुख है।
- ‘धर्म’ परम् श्रेष्ठ है।
- उत्तम शांति ‘क्षमा’ है।
- परम तृप्ति ‘विद्या’ है।
- परम सुख ‘अहिंसा’ है।
नीतिश्लोकाः पाठ का पाँचवाँ श्लोक त्रिविधं नरकस्येदं ..... का अर्थ
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत्।।
भावार्थ: काम, क्रोध और लोभ; ये नरक के तीन द्वार है। इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए नहीं तो इनसे अपना ही नाश हो जाता है।
- नरक के तीन द्वार काम, क्रोध और लोभ हैं।
- काम, क्रोध और लोभ का त्याग कर देना चाहिए।
- काम, क्रोध और लोभ का त्याग नहीं करने से स्वयं (व्यक्ति) का ही नाश हो जाता है।
नीतिश्लोकाः पाठ का छठा श्लोक षड् दोषाः पुरुषेणेह ..... का हिन्दी अर्थ
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
भावार्थ: ऐश्वर्य चाहने वाले पुरुष को निंद्रा, तंद्रा, भय, आलस्य, क्रोध और दीर्घसूत्रता; इन छः दोषों को छोड़ देना चाहिए।
- दोषों की संख्या छः है।
- ऐश्वर्य चाहने वाले पुरुष को छः दोषों का त्याग कर देना चाहिए।
- सुख चाहने वाले को छः दोषों को छोड़ देना चाहिए।
- वैभव और उन्नति चाहने वाले पुरुष को छः दोषों – निंद्रा, तंद्रा, भय, आलस्य, क्रोध और दीर्घसूत्रता को छोड़ देना चाहिए।
- तंद्रा = ऊँघना, दीर्घसूत्रता = किसी कार्य को करने में आवश्यकता से अधिक समय लगाना।
नीतिश्लोकाः पाठ का सातवाँ श्लोक सत्येन रक्ष्यते ..... का अर्थ
मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते॥
भावार्थ: धर्म की रक्षा सत्य से होती है। विद्या की रक्षा योग अर्थात अभ्यास से होती है। रूप की रक्षा स्वच्छता से होती है। कुल की रक्षा सदाचार से होती है।
- सत्य धर्म की रक्षा करता है।
- योग अर्थात अभ्यास विद्या की रक्षा करता है।
- स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है।
- सदाचार (अच्छे आचरण) से कुल की रक्षा होती है।
नीतिश्लोकाः पाठ का आठवाँ श्लोक सुलभाः पुरुषा ..... का अर्थ
अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः॥
भावार्थ: सदा प्रिय वचन बोलने वाले और सुनने वाले पुरुष सुलभ होते हैं। अप्रिय परंतु पथप्रदर्शक वचन बोलने वाले और सुनने वाले पुरुष दुर्लभ होते हैं।
- हमेशा अच्छी बातें कहने वाले एवं सुनने वाले दोनों प्रकार के पुरुष सुलभ होते हैं।
- पथप्रदर्शक (मार्ग बताने वाली) बातों को बोलने वाले एवं सुनने वाले पुरुष दुर्लभ होते हैं।
नीतिश्लोकाः पाठ का नौवाँ श्लोक पूजनीया महाभागाः ..... का अर्थ
स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्माद्रक्ष्या विशेषतः।।
भावार्थ: स्त्रियों को गृहलक्ष्मी, गृहदीपक, पुण्यमयी, महाभाग्यशाली और पूजनीया माना गया हैं। अतः इनकी रक्षा विशेष रूप से करनी चाहिए।
- स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी होती है।
- स्त्रियाँ घर की दीपक (उजाला) होती है।
- स्त्रियों को पुण्यमयी, महाभाग्यशाली और पूजनीया माना गया हैं।
- स्त्रियाँ पूजनीया होती है।
- स्त्रियों की रक्षा विशेष रूप से करनी चाहिए।
नीतिश्लोकाः पाठ का दसवाँ श्लोक अकीर्ति विनयो ..... का अर्थ
हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधमाचारो हन्त्यलक्षणम्।।
भावार्थ: विनम्रता अपयश का नाश करता है। पराक्रम अनर्थ का नाश करता है। क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है। सदाचार कुलक्षण का नाश करता है।
- विनम्रता से अपयश का नाश होता है।
- पराक्रम से अनर्थ का नाश होता है।
- क्षमा से सदा ही क्रोध का नाश होता है।
- सदाचार से कुलक्षण का नाश होता है।
यहाँ पर “नीतिश्लोकाः पाठ का अर्थ” समाप्त हुआ। आशा है कि आप इन इन्हें समझ कर याद कर लिए होंगे।
अब हम “नीतिश्लोकाः” अध्याय के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न और उनके उत्तर पढ़ेंगे। इससे आप नीतिश्लोकाः पाठ के तथ्यों को और अधिक सरलता से समझ पायेंगे और परीक्षा में इस पाठ से पूछे गए प्रश्नों का answer भी दे सकेंगे।
Class 10 Sanskrit Chapter 7 Question Answer
In the annual board examination of Sanskrit subject, 16 short answer type questions are asked, in which 1 or 2 questions from the chapter “Nitishlokah” are definitely included. Out of these 16 questions, only 8 questions have to be answered and 2 marks are fixed for each of these questions.