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व्याघ्रपथिककथा पाठ का अर्थ Class 10 Sanskrit Chapter 11 Question Answer and Notes : Introduction
This article contains all VVI Question Answers (2 marks each) from Class 10th Sanskrit book “Piyusham Part-2” Chapter 11 “VyaghrPathikKatha”. This also contains the hindi meaning of VyaghrPathikKatha chapter.
Dear students, the team of NextGen Study (#1 Online Study Portal for Bihar Board Exams) has provided the Class 10 Sanskrit Chapter 11 Question Answer here. Before this you will see the hindi meaning of VyaghrPathikKatha chapter.
प्रिय विद्यार्थियों, बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत पाठ 11 प्रश्न उत्तर को पढ़ने से पहले आपको व्याघ्रपथिककथा पाठ का अर्थ जानना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इस पाठ को हिन्दी में पढ़ने के पश्चात् ही आप इसमें लिखी बातों को अधिक आसानी से याद कर पाएँगे।
इसलिए आज हम सबसे पहले व्याघ्रपथिककथा पाठ का अर्थ हिन्दी में पढ़ेंगे और तत्पश्चात प्रश्न उत्तर को भी पढ़ कर याद करने का प्रयास करेंगे।
व्याघ्रपथिककथा पाठ का अर्थ (हिन्दी में)
संस्कृत विषय तब तक कठिन लगता हैं जब तक कि उसका हिन्दी अनुवाद हमें पता नहीं रहता। किसी भी पाठ का हिन्दी में अनुवाद करते ही वह हमें बहुत रोचक लगने लगता है। व्याघ्रपथिककथा पाठ में चार आलसियों की कहानी के द्वारा समझाया गया है कि आलस्य मनुष्य का बहुत बड़ा शत्रु है। आलसी मनुष्य अपने जीवन की रक्षा करने का भी प्रयत्न नहीं करता। यहाँ हम व्याघ्रपथिककथा पाठ का हिन्दी अनुवाद करते हुए इसके अर्थ को भी समझेंगे। परंतु इन सबसे पहले व्याघ्रपथिककथा पाठ और इसके लेखक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त करते हैं।
कक्षा 10 संस्कृत पाठ 11 नोट्स
- ‘व्याघ्र-पथिक कथा’ नारायण पंडित द्वारा रचित प्रसिद्ध नीतिकथा ग्रंथ ‘हितोपदेश’ के प्रथम भाग ‘मित्रलाभ’ से संकलित है।
- हितोपदेश में बालकों के मनोरंजन और नीतिशिक्षा के लिए पशु-पक्षियों से संबंधित अनेक कथाएँ है।
- प्रस्तुत ‘व्याघ्रपथिक कथा’ में लोभ के दुष्परिणाम का वर्णन किया गया है।
- ‘व्याघ्रपथिक कथा’ से पता चलता है कि पशु-पक्षियों से जुड़ी कहानियों का महत्त्व मानवों के लिए शिक्षाप्रद होता है।
व्याघ्रपथिककथा पाठ का हिन्दी अनुवाद
- एक बूढ़ा बाघ स्नान कर हाथ में कुश लेकर तालाब के किनारे पथिकों से कह रहा था – अरे, अरे पथिक, यह स्वर्णकंकण (सोने का कंगन) ले लो।
- एक लोभी पथिक ने विचार किया कि भाग्य से ही ऐसा अवसर मिलता है। किंतु आत्म संदेह की स्थिति में कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि –
अनिष्टादिष्टलाभेऽपि न गतिर्जायते शुभा।
यत्रास्ते विषसंसर्गों ऽमृतं तदपि मृत्यवे॥
भावार्थ: अनिष्ट से इष्ट की प्राप्ति का परिणाम भी शुभ नहीं होता है। क्योंकि, जहाँ अमृत के साथ विष का सम्पर्क होता है, वहाँ भी मृत्यु ही होती है।
निष्कर्ष:
- अनिष्ट से इष्ट की प्राप्ति का परिणाम अच्छा नहीं होता, बल्कि बुरा और दुःखदायी होता है।
- विष मिले अमृत का सेवन मृत्यु का कारण बनता है।
Class 10 Sanskrit Chapter 11 Notes
- पथिक ने सोचा कि किंतु सभी जगह धनोपार्जन में संदेह होता ही है। मैं इसका पता लगाता हूँ।
- लोभी पथिक ने बाघ से पूछा – तुम्हारा सोने का कंगन कहाँ है?
- बाघ ने अपना हाथ पसारकर सोने का कंगन दिखा दिया।
- पथिक ने बाघ से कहा – मैं कैसे तुम जैसे हिंसक पर विश्वास करूँ।
- बाघ ने पथिक से कहा – ओ पथिक सुनो। युवावस्था में मैं अति दुराचारी था। अनेक गायों और मनुष्यों की हत्या करने के कारण मेरे पुत्र और पत्नी की मृत्यु हो गई। अब मैं वंशहीन हूँ। तब किसी धार्मिक पुरुष ने मुझे उपदेश दिया, 'तुम्हें दान और धर्म का पालन करना चाहिए। उस उपदेश से, अब मैं स्नान करने वाला, दान देने वाला, गले हुए नख और दाँतों वाला वृद्ध हूँ, मैं विश्वास की पात्र कैसे न होऊँ?
निष्कर्ष:
- बाघ युवावस्था में अति दुराचारी था।
- अनेक गायों और मनुष्यों की हत्या करने के कारण बाघ के पुत्र और पत्नी की मृत्यु हो गई।
- बाघ ने कहा – “अब मैं वंशहीन हूँ।”
- किसी धार्मिक पुरुष ने बाघ को दान करने और धर्म का पालन करने का उपदेश दिया।
- उपदेश सुनने के बाद बाघ स्नान करने वाला और दान देने वाला हो गया।
- बाघ गले हुए नख और दाँतों वाला एक वृद्ध है।
- बाघ ने स्वयं को पथिक के सामने विश्वासपात्र बताया।
बाघ ने पथिक से कहा – मैंने धर्म के शास्त्रों का भी अध्ययन किया है। सुनो –
दरिद्रान्भर कौन्तेय! मा प्रयच्छेश्वरे धनम्।
व्याधितस्यौषधं पथ्यं, नीरुजस्य किमौषधेः॥
भावार्थ: हे कौन्तेय, दरिद्रों का पेट भरो! धनवान को धन मत दो। रोगी के लिए दवा स्वास्थ्यवर्धक है, लेकिन जो नीरोगी है उसके लिए दवा की क्या आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
- कौन्तेय अर्जुन को कहा गया है।
- धन गरीबों को देना चाहिए, धनवानों को नहीं।
- दवा/औषधि की आवश्यकता रोगियों को होती है, नीरोगी को दवा की आवश्यकता नहीं है।
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं विदुः॥
भावार्थ: जो असहाय लोगों को दिया जाता है, वह दान है। जो दान उचित स्थान पर और उचित समय में उपयुक्त व्यक्ति को दिया जाता है, उसे सात्विक माना जाता है।
- बाघ ने पथिक से कहा कि ‘उस सरोवर में स्नान कर इस स्वर्णकंकण (सोने के कंगन) को ले लो।
- बाघ के कहने पर पथिक लालच से स्नान करने के लिए जैसे ही सरोवर में प्रवेश किया, वह विशाल कीचड़ में फँस गया और भागने में असमर्थ हो गया।
- पथिक को कीचड़ में गिरा देखकर बाघ ने कहा, ‘आहा, तुम विशाल कीचड़ में गिर गए हो। इसलिए मैं तुम्हें ऊपर उठाऊँगा।’ यह कहकर बाघ धीरे-धीरे उसके पास पहुँचा, वह पथिक सोचने लगा –
अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया।
दुर्भगाभरणप्रायो ज्ञानं भारः क्रियां विना॥
भावार्थ: जिस व्यक्ति की इंद्रियाँ और मन उसके स्वयं के नियंत्रण में नहीं हैं, उसका सारी क्रियाएँ हाथी के स्नान जैसा होता हैं। (पानी में नहाकर अंत में हाथी स्वयं के शरीर पर वापस कीचड़ छिड़कता हैं।) क्रिया के बिना ज्ञान भार स्वरूप है। अर्थात् अगर व्यवहार में प्रयोग न करें तो कोई भी ज्ञान दुर्भाग्यशाली व्यक्ति द्वारा पहने गहने की तरह बोझ बन जाता हैं।
पथिक इस बारे में सोच ही रहा था कि बाघ उसको मारकर खा गया। इसलिए कहा गया है कि –
कङ्कणस्य तु लोभेन मग्नः पङ्के सुदुस्तरे।
वृद्धव्याघ्घेण संप्राप्तः पथिकः स मृतो यथा॥
भावार्थ: कंगन के लालच में वह कीचड़ में धँस गया। पथिक को एक बूढ़े बाघ ने ऐसे पकड़ लिया मानो वह मरा हुआ हो।
निष्कर्ष:
- पथिक कंगन के लालच में कीचड़ में फँस गया।
- बाघ धीरे-धीरे पथिक के पास पहुँचा।
- बाघ ने पथिक को इतनी आसानी से मार डाला और खा गया मानो पथिक पहले ही मर चुका हो।
यहाँ पर व्याघ्रपथिककथा पाठ का अर्थ समाप्त हुआ। आशा है कि आप इन इन्हें समझ कर याद कर लिए होंगे।
अब हम “व्याघ्रपथिककथा” अध्याय के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न और उनके उत्तर पढ़ेंगे। इससे आप व्याघ्रपथिककथा पाठ के तथ्यों को और अधिक सरलता से समझ पायेंगे और परीक्षा में इस पाठ से पूछे गए प्रश्नों का answer भी दे सकेंगे।
Class 10 Sanskrit Chapter 11 Question Answer
In the annual board examination of Sanskrit subject, 16 short answer type questions are asked, in which 1 or 2 questions from the chapter “VyaghrPathikKatha” are definitely included. Out of these 16 questions, only 8 questions have to be answered and 2 marks are fixed for each of these questions.
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 11 व्याघ्रपथिककथा प्रश्न उत्तर
1. ‘व्याघ्रपथिक कथा’ कहाँ से लिया गया है? इसके लेखक कौन है?
उत्तर:- ‘व्याघ्र-पथिक कथा’ प्रसिद्ध नीतिकथा ग्रंथ हितोपदेश के ‘मित्रलाभ’ नामक भाग से लिया गया है। हितोपदेश में बालकों के मनोरंजन और नीतिशिक्षा के लिए पशु-पक्षियों से संबंधित अनेक कथाएँ है। इसके लेखक नारायण पंडित है।
2. सोने के कंगन को देखकर पथिक ने क्या सोचा?
उत्तर:- सोने के कंगन को देखकर पथिक लोभ में पड़ गया। उसने सोचा कि भाग्य से ही ऐसा अवसर मिलता है। किंतु यहाँ आत्म संदेह की स्थिति में कार्य नहीं करना चाहिए।
3. पथिक को फँसाने के लिए बाघ ने क्या चाल चला?
उत्तर:- पथिक लोभी था। परंतु वह कुछ चालाक भी था। उसे कंगन का लालच तो था परन्तु वह बाघ पर विश्वास नहीं कर रहा था। तब पथिक को फँसाने के लिए बाघ ने उससे कहा – हे पथिक। युवावस्था में अनेक गायों और मनुष्यों का वध करने के कारण मेरे पुत्र और पत्नी मर गए। तब एक धर्मात्मा ने मुझे दान और धर्म करने का उपदेश दिया है। उनके उपदेश के बाद मैं इस समय स्नानशील, दानी, वृद्ध और गले हुए नख-दंत वाला हूँ। मेरे द्वारा शास्त्र भी पढ़ा गया है। अतः मैं विश्वास का पात्र हूँ।
4. बाघ ने पथिक को अपने दानी होने का विश्वास दिलाने के लिए क्या किया?
उत्तर:- बाघ ने पथिक को अपने दानी होने का विश्वास दिलाने के लिए कहा कि युवावस्था में अनेक गायों और मनुष्यों का वध करने के कारण उसके पुत्र और पत्नी मर गए। तब एक धर्मात्मा ने उसे दान करने और धर्म का पालन करने का उपदेश दिया। अब वह स्नान करने वाला, दानी और गले हुए नख-दंत वाला वृद्ध है। उसने शास्त्र का भी अध्ययन किया है। अतः वह विश्वास का पात्र है।
5. बाघ ने स्वयं को अहिंसक सिद्ध करने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर:- बाघ ने स्वयं को अहिंसक सिद्ध करने के लिए यह तर्क दिया कि युवावस्था में वह अति दुराचारी था। अनेक गायों और मनुष्यों के वध करने के कारण वह निःसंतान और पत्नीविहिन हो गया था। तब एक धार्मिक व्यक्ति ने पापमुक्त होने के लिए उसे दान-पुण्य करने का उपदेश दिया। वृद्धावस्था के कारण उसके नाखून और दाँत भी गल गये। अतः अब वह एक अहिंसक प्राणी है। पथिक उसकी बातों में फँस गया।
बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत पाठ 11 व्याघ्रपथिककथा प्रश्न उत्तर
6. धन और दवा किसे देना उचित है?
उत्तर:- धन गरीबों को देना उचित है और दवा रोगियों को देना उचित है क्योंकि धनवानों को धन की आवश्यकता नहीं है। उसी तरह नीरोगी को भी दवा की आवश्यकता नहीं होती है।
7. ‘व्याघ्रपथिक कथा’ के आधार पर बतायें कि सात्विक दान क्या है?
उत्तर:- ‘व्याघ्रपथिक कथा’ के अनुसार उचित स्थान पर और उचित समय में उपयुक्त व्यक्ति को दिया गया दान, सात्विक दान कहलाता है। अर्थात समय, स्थान और पात्र को ध्यान में रखकर दिया गया दान सात्विक दान होता है।
8. ‘व्याघ्रपथिक कथा’ के आधार पर बतायें कि दान किसको देना चाहिए?
उत्तर:- ‘व्याघ्रपथिक कथा’ के आधार पर दान गरीबों को देना चाहिए। साथ ही दान उसे देना चाहिए जिसने आप पर कोई उपकार नहीं किया हो। उचित स्थान पर और उचित समय में उपयुक्त व्यक्ति को दिया गया दान, सात्विक दान कहलाता है।
9. बाघ के द्वारा पकड़ लिये जाने पर पथिक अपने मन में क्या सोचता है?
उत्तर:- बाघ के द्वारा पकड़ लिये जाने पर पथिक अपने मन में सोचता है कि जिस व्यक्ति की इंद्रियाँ और मन उसके स्वयं के नियंत्रण में नहीं हैं, उसका सारी क्रियाएँ हाथी के स्नान जैसा व्यर्थ होता हैं, क्योंकि हाथी पानी में नहाकर अंत में स्वयं के शरीर पर वापस कीचड़ छिड़कता हैं। क्रिया के बिना ज्ञान भार स्वरूप है। अर्थात् अगर व्यवहार में प्रयोग न करें तो कोई भी ज्ञान दुर्भाग्यशाली व्यक्ति द्वारा पहने गए गहने की तरह बोझ बन जाता हैं।
Class 10 Sanskrit Chapter 11 VyaghrPathikKatha Question Answer
10. बूढ़े बाघ ने पथिक को कैसे मारा?
उत्तर:- बूढ़ा बाघ पथिक से तालाब में स्नान करके सोने का कंगन ले जाने के लिए कहता है। पथिक स्नान करने के लिए जैसे ही तालाब में घुसता है, वह गहरे कीचड़ में फँस जाता है और भागने में असमर्थ हो जाता है। बाघ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है और उसको मारकर खा जाता है।
11. अनिष्ट से इष्ट की प्राप्ति का परिणाम कैसे बुरा होता है?
उत्तर:- अनिष्ट से इष्ट की प्राप्ति का परिणाम इसलिए बुरा होता है, क्योंकि अनिष्ट का अर्थ है अमंगल, अशुभ, या अवांछित, और जब ऐसी नकारात्मक स्थिति से कोई वांछित चीज प्राप्त होती है, तो उसका परिणाम विष मिले अमृत के समान होता है, जो अंततः हानि ही पहुँचाता है या दुखदायी होता है।
12. ‘व्याघ्रपथिककथा’ पाठ से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:- ‘व्याघ्रपथिककथा’ नारायण पंडित द्वारा रचित एक नीतिकथा है। इस कथा में लोभ के दुष्परिणाम का वर्णन किया गया है। इस पाठ से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अधिक लोभ नहीं करनी चाहिए और लोभवश हमें अपनी जान को जोखिम में नहीं डालनी चाहिए।
VyaghrPathikKatha Sanskrit Chapter 11 Question Answer in Hindi
13. ‘ज्ञानं भारः क्रियां विना’ का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:- ‘ज्ञानं भारः क्रियां विना’ इसका अर्थ है कि यदि हम किसी भी ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग न करें तो वह ज्ञान बोझ स्वरुप होता है। वैसे ज्ञान का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं रह जाता है। अर्थात यदि कोई व्यक्ति अपने ज्ञान को अपने व्यवहारिक जीवन में प्रयोग नहीं कर पाता है तो उसके लिए वह ज्ञान बोझ बन जाता है। ठीक वैसे ही जैसे कि पथिक ने यह जानते हुए कि बाघ एक हिंसक जीव है, फिर भी उसे वह अहिंसक और दानी मान लेने की भूल करता है और बाघ के द्वारा मारा जाता है।
14. ‘ज्ञानं भारः क्रियां विना’ यह उक्ति व्याघ्रपथिक कथा पर कैसे चरितार्थ होती है?
उत्तर:- व्याघ्रपथिक कथा में एक पथिक लोभ के कारण एक बूढ़े बाघ द्वारा पकड़ा जाता है और मारकर खा लिया जाता है। पथिक दो गलतियाँ करता है। पहली कि वह सोने के कंगन के लोभ में पड़ता है और दूसरी कि वह बाघ जैसे हिंसक जानवर को अहिंसक और दानी मान लेता है। पथिक का ज्ञान व्यर्थ रह जाता है। इस प्रकार ‘ज्ञानं भारः क्रियां विना’ यह उक्ति व्याघ्रपथिक कथा पर चरितार्थ होती है।
15. ‘व्याघ्रपथिक कथा’ को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें?
उत्तर:- ‘व्याघ्रपथिक कथा’ नारायण पंडित द्वारा रचित एक नीति कथा है। इस कथा में लोभ के दुष्परिणाम का वर्णन किया गया है। इस कथा में एक बूढ़ा बाघ स्नान कर हाथ में सोने का एक कंगन लेकर तालाब के किनारे पुकारता है – हो! हो! पथिक! यह सोने का कंगन ले लो। एक लोभी पथिक उसके जाल में फंस जाता है। बाघ उसे स्नान कर सोने का कंगन लेने को कहता है। पथिक स्नान करने के लिए जैसे ही तालाब में घुसता है, वह गहरे कीचड़ में फँस जाता है और भागने में असमर्थ हो जाता है। बाघ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है और उसको मारकर खा जाता है।