Table of Contents (toc)
मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार भौतिकी कक्षा 10 अध्याय 3 Question Answer : Introduction
This article contains all VVI Question Answers (subjective) from Class 10 Physics Chapter 3 Refraction of Light. These questions are of short-answer and long-answer type.
प्रिय विद्यार्थियों, बिहार बोर्ड भौतिकी कक्षा 10 अध्याय 3 Question Answer के अन्तर्गत प्रकाशित इन सभी महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को पढ़-पढ़ कर याद करने का प्रयास करें। याद हो जाने के पश्चात् इन्हें अपने नोटबुक में लिखना न भूलें।
तो चलिए आज हम सबसे पहले मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार अध्याय के लघु उत्तरीय प्रश्नों को पढ़ते हैं और तत्पश्चात दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को भी पढ़ कर याद करने का प्रयास करेंगे।
Class 10 Physics Chapter 3 Question Answer (Short Answer Type)
In the annual board examination of Science subject, 8 short answer type questions are asked in Physics section, in which 1 or 2 questions from the chapter “Human Eye And Colourful World” are definitely included. Out of these 8 questions, only 4 questions have to be answered and 2 marks are fixed for each of these questions.
भौतिकी कक्षा 10 अध्याय 3 Question Answer
1. मानव नेत्र के प्रमुख भागों के नाम लिखें।
उत्तर: मानव नेत्र एक महत्वपूर्ण सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है। यह हमें हमारे चारों ओर के रंग बिरंगे संसार को देखने योग्य बनाता है। इसके प्रमुख भाग हैं – कॉर्निया, परितारिका, पुतली, अभिनेत्र लेंस, दृष्टिपटल, नेत्रोद, काचाभ द्रव, पक्ष्माभी पेशियाँ और दृक तंत्रिकाएँ।
2. मानव नेत्र का स्वच्छ नामांकित आरेख खींचे।
उत्तर: मानव नेत्र का एक स्वच्छ नामांकित चित्र:–
3. मानव नेत्र में परितारिका का क्या कार्य है?
उत्तर: मानव नेत्र में परितारिका का कार्य पुतली के आकार को नियंत्रित करना है। जब प्रकाश अधिक चमकीला होता है तो परितारिका सिकुड़ कर पुतली को छोटा बना देती हैं जिससे नेत्र में कम प्रकाश प्रवेश करता है और जब प्रकाश मंद होता है तो परितारिका शिथिल होकर पुतली को बड़ा बना देती है जिससे नेत्र में अधिक प्रकाश प्रवेश कर पाता है।
4. नेत्र की समंजन क्षमता से आप क्या समझते है?
उत्तर: अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर हमें निकट तथा दूर स्थित वस्तुओं को देखने योग्य बनाती है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।
5. मानव नेत्र में पक्ष्माभी पेशियों का क्या कार्य है?
उत्तर: मानव नेत्र में पक्ष्माभी पेशियाँ अभिनेत्र लेंस की वक्रता में परिवर्तन कर नेत्र के लिए समंजन का कार्य करती है। अर्थात यह भिन्न-भिन्न दूरियों पर रखे वस्तुओं को स्पष्ट देखने के लिए नेत्र की फोकस-दूरी में आवश्यक परिवर्तन करती है।
Class 10 Physics Chapter 3 Question Answer in Hindi
6. निकट रखी वस्तुओं और दूर रखी वस्तुओं को देखने के लिए पक्ष्माभी पेशियाँ किस प्रकार से अभिनेत्र लेंस की फोकस-दूरी को समायोजित करती है?
अथवा, हमारे नेत्र पास की वस्तुओं और दूर की वस्तुओं को देखने योग्य कैसे बन जाते हैं?
उत्तर: निकट रखी वस्तुओं और दूर रखी वस्तुओं को देखने के लिए पक्ष्माभी पेशियाँ अपने तनाव में परिवर्तन कर अभिनेत्र लेंस की फोकस-दूरी को समायोजित करती है। जब हम दूर स्थित वस्तुओं को देखते हैं तो पक्ष्माभी पेशियाँ शिथिल हो जाती है। इससे अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है और इसकी फोकस-दूरी बढ़ जाती है। जब हम निकट रखी वस्तुओं को देखते हैं तो पक्ष्माभी पेशियाँ सिकुड़ जाती है। इससे अभिनेत्र लेंस मोटा हो जाता है और इसकी फोकस-दूरी घट जाती है। इस तरह से प्रत्येक स्थिति में वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टि पटल पर ही बनता है जिससे हमारे नेत्र पास की वस्तुओं और दूर की वस्तुओं को देखने योग्य बन जाते हैं।
7. मानव नेत्र द्वारा देखने की क्रिया का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर: किसी वस्तु से परावर्तित प्रकाश कॉर्निया से होकर हमारे नेत्र में प्रवेश करता है। यह अपवर्तित प्रकाश अभिनेत्र-लेंस पर पड़ता है, जो वस्तु का वास्तविक, उल्टा और छोटा प्रतिबिंब दृष्टिपटल या रेटिना पर बनाता है। रेटिना में स्थित प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ इस प्रतिबिंब को विद्युत सिग्नल में बदल देते हैं जो तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है, जिससे हम वस्तु को जैसा है वैसा ही देख लेते है।
8. सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी क्या है? सामान्य नेत्र के लिए निकट-बिंदु कहाँ पर होता है?
उत्तर: वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी वस्तु को नेत्र बिना किसी तनाव के सुस्पष्ट देख सकता है उसे नेत्र का निकट-बिंदु अथवा सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहते हैं। सामान्य नेत्र के लिए निकट-बिंदु नेत्र से 25 cm की दूरी पर होता है।
9. सुस्पष्ट दृष्टि की अधिकतम दूरी क्या है? सामान्य नेत्र के लिए दूर-बिंदु कहाँ पर होता है?
उत्तर: वह दूरतम बिंदु जहाँ तक नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है उसे नेत्र का दूर-बिंदु अथवा सुस्पष्ट दृष्टि की अधिकतम दूरी कहते हैं। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है।
भौतिकी कक्षा 10 अध्याय 3 प्रश्न उत्तर
10. सामान्य नेत्र 25 सेमी से कम दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते है?
उत्तर: हमारे नेत्र की पक्ष्माभी पेशियाँ एक निश्चित सीमा से अधिक नहीं सिकुड़ पाती है। जिससे अभिनेत्र लेंस की फोकस-दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा से कम नहीं होती है। सामान्य नेत्र के लिए न्यूनतम संभावित फोकस-दूरी 25 सेमी होती है। यही कारण है कि सामान्य नेत्र 25 सेमी से कम दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते है।
या
उत्तर: हमारे नेत्र की पक्ष्माभी पेशियाँ एक निश्चित सीमा से अधिक नहीं सिकुड़ पाती है। जिससे अभिनेत्र लेंस की फोकस-दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा से कम नहीं होती है। एक सामान्य अभिनेत्र लेंस 25 सेमी से कम दूरी पर रखी वस्तुओं को फोकसित नहीं कर पाता है। यही कारण है कि सामान्य नेत्र 25 सेमी से कम दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते है।
नोट: आप उपरोक्त दोनों में से किसी एक उत्तर को चुन सकते है।
11. मोतियाबिंद क्या है? इसका इलाज कैसे किया जाता है?
उत्तर: कभी-कभी अधिक आयु के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुंधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं। इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी हो जाती है और कभी-कभी पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाता है। मोतियाबिंद का इलाज शल्य चिकित्सा द्वारा किया जाता है।
12. दृष्टि निर्बंध क्या है?
उत्तर: मानव नेत्र द्वारा देखी गई वस्तु का प्रभाव रेटिना पर 1/16 सेकंड तक बना रहता है, भले ही वस्तु को हटा दिया जाए। इसे ही दृष्टि निर्बंध कहते हैं। दृष्टि निर्बंध सिद्धांत का उपयोग प्रोजेक्टर एवं टेलीविजन के प्रदर्शन में होता है।
13. मानव नेत्र में दृष्टि दोष क्या है? यह कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: जब मानव नेत्र स्पष्टदृष्टि की न्यूनतम दूरी (25 सेमी) से लेकर अनंत दूरी के बीच रखी वस्तुओं का स्पष्ट प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर न बनाकर इसके आगे या पीछे बनाता है तो इस स्थिति को मानव नेत्र में दृष्टि दोष कहते है। मानव नेत्र में प्रमुखतः तीन प्रकार के दृष्टि दोष पाए जाते हैं – (i) निकट दृष्टि दोष, (ii) दूर दृष्टि दोष और (iii) जरा-दूरदर्शिता।
Physics Class 10th Chapter 3 Question Answer
14. दूर दृष्टि दोष क्या है? इसके संशोधन के लिए किस लेंस का उपयोग किया जाता है?
उत्तर: जब कोई व्यक्ति दूर की रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परन्तु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता है तो इस स्थिति को दूर-दृष्टिता या दूर दृष्टि दोष कहा जाता है। इस दोष से ग्रसित व्यक्ति के नेत्र में निकट रखी वस्तुओं का प्रतिबिंब दृष्टिपटल के पीछे बनता है। इसके संशोधन के लिए उचित क्षमता के उत्तल लेंस का उपयोग किया जाता है।
15. निकट दृष्टि दोष किसे कहते है? इसके निवारण के लिए किस लेंस का उपयोग किया जाता है?
उत्तर: जब कोई व्यक्ति निकट की रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परन्तु दूर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता है तो इस स्थिति को निकट-दृष्टिता या निकट दृष्टि दोष कहा जाता है। इस दोष से ग्रसित व्यक्ति के नेत्र में दूर रखी वस्तुओं का प्रतिबिंब दृष्टिपटल के सामने बनता है। इसके संशोधन के लिए उचित क्षमता के अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है।
16. जरा-दूरदर्शिता से आप क्या समझते है? इसे दूर करने के लिए हम किस लेंस का उपयोग करते है?
उत्तर: आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ अभिनेत्र लेंस का लचीलापन कम हो जाता है और पक्ष्माभी पेशियों भी दुर्बल हो जाती है। जिससे नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति के नेत्र निकट रखी वस्तुओं के साथ-साथ अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को भी सुस्पष्ट नहीं देख पाते है। इस स्थिति को जरा-दूरदर्शिता कहते है। जरा-दूरदर्शिता को दूर करने के लिए द्विफोकसी लेंस का उपयोग किया जाता है।
17. मानव नेत्र में दृष्टि दोष के प्रकार एवं उनके संशोधन के उपाय के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर: मानव नेत्र में प्रमुख रूप से तीन प्रकार के अपवर्तन दृष्टि दोष पाए जाते हैं। ये दोष और उनके संशोधन के उपाय निम्नलिखित है:
(i) निकट दृष्टि दोष: इसका संशोधन उचित क्षमता के अवतल लेंस द्वारा किया जाता है।
(ii) दूर दृष्टि दोष: इसका संशोधन उचित क्षमता के उत्तल लेंस द्वारा किया जाता है।
(iii) जरा-दूरदर्शिता: इसका संशोधन के लिए द्विफोकसी लेंस का उपयोग किया जाता है। इसमें ऊपर अवतल लेंस और नीचे उत्तल लेंस का संयोजन होता है।
18. प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण से आप क्या समझते है?
उत्तर: श्वेत प्रकाश के विभिन्न वर्णों का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होता है। इसलिए किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात्, प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते हैं। इसलिए प्रत्येक वर्ण की किरणें अलग-अलग पंथों के अनुदिश निर्गत होती हुई दिखाई देती है। अर्थात श्वेत प्रकाश इसके सात अवयवी वर्णों में विभक्त हो जाता है। इस घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहते है।
कक्षा 10 भौतिक विज्ञान पाठ 3 प्रश्न उत्तर
19. काँच के प्रिज्म से गुजरते हुए श्वेत प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण का चित्र सहित व्याख्या करें।
उत्तर: जब हम श्वेत प्रकाश को काँच के प्रिज्म के किसी फलक पर डालते है तो प्रिज्म श्वेत प्रकाश को इसके अवयवी वर्णों में विभक्त कर देता है। प्रिज्म से निकलने वाला प्रकाश सात रंगों का होता है। इस घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहते है और इससे प्राप्त रंगीन पट्टी को वर्णपट (स्पेक्ट्रम) कहते है।
काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण का चित्र:-
20. सूर्य के दृश्य प्रकाश (श्वेत प्रकाश में) में कौन-कौन घटक शामिल होते हैं? सूर्य के प्रकाश के उन दो घटकों के नाम बताइए जो हमें दिखाई नहीं देते हैं?
उत्तर: सूर्य के दृश्य प्रकाश (श्वेत प्रकाश में) में मुख्यतः सात घटक या वर्ण शामिल होते हैं। इन वर्णों का क्रम है; बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल। इसे संक्षेप में 'बैजानीहपीनाला' कहते हैं। पराबैंगनी किरणें और अवरक्त किरणें सूर्य के प्रकाश के वे दो घटक हैं जो हमें दिखाई नहीं देते हैं।
21. वर्णपट (स्पेक्ट्रम) क्या है? श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम में इसके घटकों को क्रमानुसार लिखें।
उत्तर: श्वेत प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण होने पर सात रंगों की एक रंगीन पट्टी प्राप्त होती है। इसे ही वर्णपट या स्पेक्ट्रम कहते है। श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम में इसके घटकों का क्रम इस प्रकार होता है – बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल।
22. इंद्रधनुष क्या है? व्याख्या करें।
अथवा, इंद्रधनुष कैसे बनता है?
उत्तर: इंद्रधनुष एक प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है जो वर्षा के पश्चात सूर्य के विपरीत दिशा में एक अर्द्धवृत्ताकार रंगीन पट्टी के रूप में दिखाई देता है। सूर्य का प्रकाश जब वर्षाजल की सूक्ष्म बूँदों से होकर गुजरता है, तब ये बूँदें सूर्य के प्रकाश को अपवर्तित तथा वर्ण-विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती है। अंत में जल की बूँदों से बाहर निकलते समय ये सूर्य के प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती है। जल की बूँदों से निकलने वाली किरणें आकाश में एक अर्द्धवृत्ताकार रंगीन पट्टी का निर्माण करती है, जिसे हमलोग इन्द्रधनुष कहते हैं।
Human Eye And Colourful World Subjective Question Answer
23. तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
उत्तर: तारों से आनेवाले प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। पृथ्वी का वायुमंडल कभी शांत नहीं होता है। गर्म तथा ठंडी हवा की धाराएँ हमेशा बहती रहती है। ठंडी हवा की अपेक्षा गर्म हवा हल्की (कम सघन) होती है तथा इसका अपवर्तनांक भी ठंडी हवा की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। वायुमंडल के अपवर्तनांक में होनेवाले परिवर्तन के कारण तारों से आनेवाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है तथा हमारी आँखों में प्रवेश करने वाली प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है। जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला तो कभी धुंधला दिखाई देता है, अर्थात टिमटिमाता प्रतीत होता है।
24. चंद्रमा तथा अन्य ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते हैं?
उत्तर: चंद्रमा तथा अन्य ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास है। इसलिए इनसे आने वाले प्रकाश-किरणों का वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण होने वाला पथ विचलन अत्यंत सूक्ष्म होता है, जो हमें मालूम नहीं पड़ता है। जिसके कारण चंद्रमा तथा अन्य ग्रह नहीं टिमटिमाते हैं।
25. अग्रिम सूर्योदय एवं विलंबित सूर्यास्त क्या होता है? समझाइए।
उत्तर: वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है, इसे अग्रिम सूर्योदय कहा जाता है। जबकि वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही सूर्य हमें वास्तविक सूर्यास्त से लगभग 2 मिनट बाद तक दिखाई देता रहता है, इसे विलंबित सूर्यास्त कहा जाता है। इस प्रकार वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्योदय एवं सूर्यास्त के बीच का समय लगभग 4 मिनट (2 मिनट + 2 मिनट) बढ़ जाता है।
26. प्रकाश के प्रकीर्णन से आप क्या समझते है?
उत्तर: प्रकाश जब वायुमंडल में उपस्थित कणों पर पड़ता है तो ये कण प्रकाश की कुछ ऊर्जा को अवशोषित कर फिर उसे चारों तरफ विकरित करते (छितरा देते) है। इस प्रक्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन कहा जाता है। प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही जिस कमरे में प्रकाश सीधे प्रवेश नहीं करता वह कमरा भी प्रकाशित रहता है।
27. वायुवीय प्रकीर्णन तरंग लंबाई पर कैसे निर्भर करती है?
उत्तर:- वायुमंडल में उपस्थित सूक्ष्म कण छोटी तरंग लंबाई वाले प्रकाश को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं। जबकि वायुमंडलीय कणों द्वारा बड़े तरंग लंबाई वाले प्रकाश का प्रकीर्णन बहुत कम होता है। इस प्रकार से वायुवीय प्रकीर्णन तरंग लंबाई पर निर्भर करती है।
28. टिन्डल प्रभाव क्या है? उदाहरण सहित बताएँ।
उत्तर: जब कोई प्रकाश किरण पुंज किसी कोलॉइडी विलियन से होकर गुजरता है तो कोलॉइडी कण प्रकाश को प्रकीर्णित कर देते हैं। इन कणों से विसरित प्रकाश परावर्तित होकर हमारे नेत्रों तक पहुँचता है और कोलॉइडी विलियन में किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। इस घटना को टिन्डल प्रभाव कहा जाता है। उदाहरण के लिए, जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो कमरे में किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है।
कक्षा 10 भौतिकी पाठ 3 प्रश्न उत्तर
29. स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है?
उत्तर: प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण स्वच्छ आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ता है। जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरता है वायुमंडल में उपस्थित सूक्ष्म कण (जैसे गैस के अणु, जल-बूँद, धूल-कण आदि) लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग के प्रकाश को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं। यही प्रकीर्णित नीला प्रकाश हमारी नेत्रों तक पहुँचता है, जिससे हमें स्वच्छ आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ता है।
30. किसी अंतरिक्ष यात्री को आकाश नीला की अपेक्षा काला क्यों दिखाई देता है?
उत्तर: पृथ्वी से अत्यधिक ऊँचाई पर सूर्य के प्रकाश का स्पष्ट रूप से प्रकीर्णन नहीं हो पाता है। यही कारण है कि किसी अंतरिक्ष यात्री को अथवा अत्यधिक ऊँचाई पर उड़ते हुए यात्रियों को आकाश नीला की अपेक्षा काला दिखाई देता है।
31. सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ (लाल रंग का) क्यों दिखाई देता है?
उत्तर: सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य क्षितिज के समीप होता है जिससे सूर्य के प्रकाश को हमारी नेत्रों तक पहुँचने से पहले अधिक दूरी तय करनी पड़ती है और पृथ्वी के वायुमंडल में वायु की मोटी परतों से होकर गुजरना पड़ता है। वायुमंडल के कण नीले तथा बैंगनी रंग के प्रकाश के बहुत बड़े भाग को प्रकीर्णित कर देते हैं। अतः जो प्रकाश हमारी नेत्रों तक पहुँचता है उसमें मुख्यतः लाल रंग होता है। यही कारण है कि सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ (लाल रंग का) दिखाई देता है।
32. दोपहर के समय सूर्य श्वेत क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर: दोपहर के समय सूर्य के प्रकाश को हमारी नेत्रों तक पहुँचने से पहले अपेक्षाकृत कम दूरी तय करनी पड़ती है और इसे पृथ्वी के वायुमंडल में कम कणों से होकर गुजरना पड़ता है। इसलिए दोपहर के समय नीले तथा बैंगनी रंग के प्रकाश का थोड़ा-सा भाग ही प्रकीर्णित होता है। अतः जो प्रकाश हमारी नेत्रों तक पहुँचता है वह श्वेत होता है। यही कारण है कि दोपहर के समय सूर्य श्वेत प्रतीत होता है।
33. सिग्नल में या खतरे के निशान के रूप में लाल रंग का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर: लाल रंग के प्रकाश का तरंगदैर्घ्य सबसे अधिक होता है। जिसके कारण यह कोहरे या धुएँ द्वारा सबसे कम प्रकीर्णित होता है। इसीलिए, यह हमें बहुत दूर से भी दिखाई देता है। यही कारण है कि सिग्नल में या खतरे के निशान के रूप में लाल रंग का उपयोग किया जाता है।
मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार पाठ के प्रश्न उत्तर
34. स्पेक्ट्रम कैसे बनता है? उदाहरण सहित समझाएँ।
उत्तर: श्वेत प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण होने पर स्पेक्ट्रम बनता है। सूर्य का प्रकाश जब जल-बूँदों अथवा किसी प्रिज्म द्वारा अपवर्तित होता है तब इसका वर्ण-विक्षेपण भी होता है। जिसके फलस्वरूप स्पेक्ट्रम का निर्माण होता है।
35. दृष्टि परास क्या है? सामान्य नेत्र के लिए यह कितनी होती है?
उत्तर: नेत्र के निकट बिंदु और दूर बिंदु के बीच की दूरी को दृष्टि परास कहते हैं। सामान्य नेत्र के लिए यह 25 सेंटीमीटर और अनंत के बीच की दूरी होती है।
36. हमारे नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश की मात्रा का नियंत्रण कैसे होता है?
अथवा, मानव नेत्र में पुतली का कार्य क्या है?
उत्तर: मानव नेत्र में पुतली का कार्य नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करना है। जब प्रकाश अधिक चमकीला होता है तो परितारिका सिकुड़ कर पुतली को छोटा बना देती हैं जिससे नेत्र में कम प्रकाश प्रवेश करता है और जब प्रकाश मंद होता है तो परितारिका शिथिल होकर पुतली को बड़ा बना देती है जिससे नेत्र में अधिक प्रकाश प्रवेश कर पाता है। इस तरह से नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश की मात्रा का नियंत्रण होता है।
37. तारे टिमटिमाते हैं परन्तु चंद्रमा तथा अन्य ग्रह नहीं टिमटिमाते हैं, क्यों?
उत्तर: तारे हमसे बहुत दूर हैं। इसलिए इनसे आने वाले प्रकाश-किरणों का वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण होने वाला पथ विचलन अधिक होता है, जिसके कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। जबकि चंद्रमा तथा अन्य ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास है। इसलिए इनसे आने वाले प्रकाश-किरणों का वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण होने वाला पथ विचलन अत्यंत सूक्ष्म होता है, जो हमें मालूम नहीं पड़ता है। जिसके कारण चंद्रमा तथा अन्य ग्रह नहीं टिमटिमाते हैं।
38. तारे और ग्रहों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:- तारे और ग्रहों में निम्नलिखित अंतर है –
तारा |
ग्रह |
(i) तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। |
(i) ग्रह टिमटिमाते प्रतीत नहीं होते हैं। |
(ii) तारे पृथ्वी से बहुत दूर स्थित हैं। |
(ii) ग्रह तारों की अपेक्षा कम दूरी पर स्थित है। |
(iii) तारों का अपना प्रकाश होता है। |
(iii) ग्रहों का अपना प्रकाश नहीं होता है।
|
यहाँ पर मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार अध्याय के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर समाप्त हुआ। आशा है कि आप इन सभी प्रश्नों को समझ गए होंगे और याद भी कर लिए होंगे। इन्हें अपने नोटबुक में लिखने का प्रयास करें।
अब हम मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार अध्याय के महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे।
Class 10 Science Chapter 11 Question Answer in Hindi (Long Answer Type)
In the annual board examination of Science subject, 2 long answer type questions are asked in Physics section, in which 1 question may be from the chapter “Human Eye And Colourful World”. Out of these 2 questions, only 1 question has to be answered and 6 marks are fixed for each of these questions.
1. मानव नेत्र की संरचना का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर: मानव नेत्र की संरचना –
मानव नेत्र एक महत्वपूर्ण संवेदी अंग है। यह कैमरे की भांति कार्य करता है। इसका आकार लगभग गोलीय होता है, जिसे नेत्र-गोलक कहते है। इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है। नेत्र-गोलक का उभरा हुआ भाग एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसे कॉर्निया कहते हैं। कॉर्निया के पीछे पाई जाने वाली गहरे पेशीय डायाफ्राम को परितारिका कहते हैं। परितारिका के बीच में एक छिद्र होती है जिसे पुतली कहते है। परितारिका के पीछे स्थित संरचना को पक्ष्माभी या सिलियारी माँसपेशियां कहते हैं। ये सिलियरी माँसपेशियां रेशेदार जिलेटिन जैसे पारदर्शी एवं मुलायम पदार्थ से बने एक उत्तल लेंस को लटकाकर रखती है, जिसे अभिनेत्र लेंस या क्रिस्टलीय लेंस कहते हैं। मानव नेत्र के पीछे के भाग को, जिस पर वस्तु के प्रतिबिंब का निर्माण होता है, रेटिना या दृष्टिपटल कहते है। रेटिना एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है जिसमें बहुत सारे प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं। मानव नेत्र बहुत सारे तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क से जुड़ा रहता है।
मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार Subjective Question Answer
2. मानव नेत्र द्वारा देखने की क्रिया का वर्णन करें।
उत्तर: मानव नेत्र एक महत्वपूर्ण संवेदी अंग है। यह कैमरे की भाँति कार्य करता है। इसका आकार लगभग गोलीय होता है, जिसे नेत्र-गोलक कहते है। नेत्र-गोलक का उभरा हुआ पारदर्शी भाग कॉर्निया कहलाता हैं। किसी वस्तु से परावर्तित प्रकाश कॉर्निया से होकर हमारे नेत्र में प्रवेश करता है। अतः नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है। कॉर्निया के पीछे पाई जाने वाली गहरे पेशीय डायाफ्राम को परितारिका कहते हैं। परितारिका के मध्य स्थित पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। पुतली अंधेरे में फैल जाती है और तेज रौशनी में सिकुड़ जाती है। परितारिका पुतली के आकार को नियंत्रित करता है। परितारिका के पीछे स्थित सिलियरी माँसपेशियां भिन्न-भिन्न दूरियों पर रखे वस्तुओं को देखने के लिए सामंजस्य स्थापित करते है। अब अपवर्तित प्रकाश अभिनेत्र-लेंस पर पड़ता है, जो वस्तु का वास्तविक, उल्टा और छोटा प्रतिबिंब दृष्टिपटल या रेटिना पर बनाता है। रेटिना में बहुत सारे प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं जो प्रदीप्ति होने पर सक्रिय हो जाती है तथा विद्युत सिग्नल उत्पन्न करती है। ये सिग्नल तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है, जिससे हम वस्तु को जैसा है वैसा ही देख लेते है।
Physics Class 10th Chapter 3 Question Answer pdf Download
3. दृष्टि दोष क्या है? यह कितने प्रकार के होते हैं, इसे कैसे ठीक किया जा सकता है? सचित्र वर्णन करें।
उत्तर: कभी-कभी नेत्र धीरे-धीरे अपनी समंजन क्षमता खो देते हैं और इस स्थिति में व्यक्ति का नेत्र वस्तुओं का स्पष्ट प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर नहीं बना पाते हैं। ऐसी कमी मानव नेत्र में दृष्टि दोष कहलाती है।
यह मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं – (i) निकट-दृष्टि दोष, (ii) दूर-दृष्टि दोष और (iii) जरा-दूरदर्शिता।
(i) निकट-दृष्टि दोष का संशोधन उचित क्षमता के अवतल लेंस द्वारा किया जाता है।
(ii) दूर-दृष्टि दोष का संशोधन उचित क्षमता के उत्तल लेंस द्वारा किया जाता है।
(iii) जरा-दूरदर्शिता के संशोधन के लिए द्विफोकसी लेंस का उपयोग किया जाता है। इसमें ऊपर अवतल लेंस और नीचे उत्तल लेंस का संयोजन होता है।
4. किसी निकट दृष्टि से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिन्दु नेत्र के सामने 80 cm दूरी पर है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता क्या होगी?
उत्तर: निकट दृष्टि दोष से पीड़ित इस व्यक्ति का नेत्र 80cm से दूर रखी वस्तुओं को नहीं देख पाता है। इसलिए इस दोष को दूर करने के लिए एक ऐसे लेंस की आवश्यकता है जो अनंत पर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब नेत्र से 80 cm पर बना दे।
यहाँ, वस्तु दूरी u = – ∞ cm तथा
प्रतिबिंब की दूरी v = – 80 cm.
लेंस की क्षमता P तथा प्रकृति = ?
अब,
लेंस-सूत्र 1/v – 1/u = 1/f से,
1/f = 1/v – 1/u
= 1/(– 80 cm) – 1/(– ∞ cm)
= – 1/(80 cm) + 0
= – 1/(80 cm)
∴ f = – 80 cm
यहाँ, ऋणात्मक चिह्न यह बताता है कि लेंस अवतल है।
यदि लेंस की क्षमता P हो, तो
सूत्र P = 1/f से,
P = 1/(– 80 cm)
= – 1.25mᐨ¹
= – 1.25D.
अतः, आवश्यक लेंस की क्षमता = 1.25 D तथा प्रकृति अवतल है।