
भारतीय संस्काराः पाठ का अर्थ Class 10 Sanskrit Chapter 6 Question Answer and Notes : Introduction
This article contains all VVI Question Answers (2 marks each) from Class 10th Sanskrit book “Piyusham Part-2” Chapter 6 “Bhartiya Sanskarah”. This also contains the hindi meaning of the Bhartiya Sanskarah chapter.
प्रिय विद्यार्थियों, बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत पाठ 6 प्रश्न उत्तर को पढ़ने से पहले आपको भारतीय संस्काराः पाठ का अर्थ जानना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इस पाठ को हिन्दी में पढ़ने के पश्चात् ही आप इसमें लिखी बातों को अधिक आसानी से याद कर पाएँगे।
इसलिए आज हम सबसे पहले भारतीय संस्काराः पाठ का अर्थ हिन्दी में पढ़ेंगे और तत्पश्चात् इस पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर को भी पढ़ कर याद करने का प्रयास करेंगे।
भारतीय संस्काराः पाठ का अर्थ (हिन्दी में)
संस्कृत विषय तब तक कठिन लगता हैं जब तक कि उसका हिन्दी अनुवाद हमें पता नहीं रहता। किसी भी पाठ का हिन्दी में अनुवाद करते ही वह हमें बहुत रोचक लगने लगता है। भारतीय संस्काराः पाठ में हमारे जीवन में समय-समय पर होने वाले संस्कारों के बारे में जानकारी दी गई है। हमारे देश में संस्कार की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। संस्कार का शाब्दिक अर्थ “शुद्ध करना” या “अच्छे गुणों को ग्रहण करना” होता है। यहाँ हम भारतीय संस्काराः पाठ का हिन्दी अनुवाद करते हुए इसके अर्थ को भी समझेंगे। परंतु इन सबसे पहले भारतीय संस्काराः पाठ से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त करते हैं।
कक्षा 10 संस्कृत पाठ 6 नोट्स
- भारतीय संस्कृति अन्य से विशिष्ट है, क्योंकि यहाँ मनुष्य जीवन में समय-समय पर संस्कारों का अनुष्ठान होता है।
- आज संस्कार शब्द का प्रयोग सीमित व्यंग्यात्मक रूप में किया जाता है लेकिन संस्कृत का यह उपकरण भारत के व्यक्तित्व को आकार देता है।
- विदेशों में रहने वाले भारतीय संस्कृति के प्रति उन्मुख और जिज्ञासु होते हैं।
- “भारतीय संस्काराः” पाठ इन भारतीय संस्कारों का संक्षिप्त परिचय और महत्व बताता है।
Class 10 Sanskrit Chapter 6 Notes
- भारतीय जीवन में प्राचीन काल से ही संस्कारों का महत्त्व रहा है।
- प्राचीन संस्कृति की पहचान संस्कारों के द्वारा होती है।
- ऋषियों की यह अवधारणा (सोच) रही है कि जीवन के सभी मुख्य अवसरों पर वेदमन्त्रों का पाठ, बुजुर्गों का आशीर्वाद, हवन और परिवार के सभी सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। ये सब केवल संस्कारों के अनुष्ठान के समय ही संभव होता है। इस प्रकार संस्कारों का विशेष महत्त्व है।
- संस्कार का मूल अर्थ शुद्ध होना और गुणों को ग्रहण करना है।
- संस्कार क्रमशः मानव को शुद्ध करने, उसके दोषों को दूर करने और गुणों को ग्रहण करने में योगदान देते हैं।
भारतीय संस्काराः पाठ का हिन्दी अनुवाद
जन्म पूर्व होने वाले संस्कार
जन्म पूर्व होने वाले तीनों संस्कारों गर्भाधान, पुंसवन और सीमंतोनयन का प्रयोजन गर्भ की रक्षा करना, गर्भस्थ शिशु में संस्कारों का आरोपण और गर्भवती महिला को प्रसन्न रखना है।
शैशव संस्कार
शैशवास्था में कुल छः संस्कार होते हैं। ये हैं – (क्रमशः) जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म (मुंडन) और कर्णवेध।
शैशव संस्कारों का विवरण
- जातकर्म संस्कार प्रथम शैशव संस्कार है। यह शिशु के जन्म के समय किया जाता है। शिशु का जन्म होने पर जो भी कर्म संपन्न किए जाते हैं उसे जातकर्म कहते हैं। इसमें शिशु को स्नान कराना, सोने की श्लाका या अंगुली से घी और शहद चटाना, स्तनपान कराना, आदि कर्म शामिल हैं।
- नामकरण संस्कार में पिता के द्वारा या परिवार के किसी अन्य बुजुर्ग द्वारा शिशु के कान में उसका नाम पुकारा जाता है। इस संस्कार से शिशु को एक नाम मिलता है।
- निष्क्रमण संस्कार शिशु के जन्म के चौथे महीने में किया जाता है। इस समय तक शिशु का शरीर बाहरी वातावरण के लिए अनुकूल हो जाता है। शिशु को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। इसके बाद उसे घर से बाहर लाकर सूर्य देव और चंद्र देव के दर्शन कराए जाते हैं। इससे शिशु सूर्य के तेज और चंद्रमा की शीतलता से अवगत होता है।
- अन्नप्राशन संस्कार जन्म के पाँचवे या छठे महीने में होता है जब शिशु की पाचन क्षमता बढ़ जाती है। इस संस्कार में शिशु को पारंपरिक विधियों के साथ पहली बार अनाज खिलाया जाता है। इसमें चावल का खीर बनाकर देवी-देवताओं को इसका भोग लगाया जाता है। इसके बाद पिता या अन्य बुजुर्ग प्रसाद के रूप में इस खीर को शिशु को चटाते है।
- जब बच्चे के सिर के बाल पहली बार उतारे जाते हैं तो उसे चूड़ाकर्म यानी मुण्डन संस्कार कहते हैं। यह संस्कार सामान्यतः एक वर्ष या तीन वर्ष की आयु में किया जाता है। मान्यता है कि इससे सिर मजबूत होता है। साथ ही बुद्धि भी तेज होती है।
- कर्णवेध संस्कार अंतिम शैशव संस्कार है। कर्णवेध संस्कार बच्चे के कान छिदवाने के समय होता है, जो सामान्यतः 1 से 5 वर्ष की उम्र में किया जाता है। इसके तहत लड़के के दाएं और लड़की के बाएं कान को पहले छेदने की परंपरा है।
नोट: ऊपर सभी छः शैशव संस्कारों का विवरण केवल सामान्य जानकारी के लिए है।
शिक्षा संस्कार
बच्चों के शिक्षा ग्रहण करने की अवधि में कुल पाँच शिक्षा संस्कार किये जाते हैं, जो क्रमशः अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत और समावर्तन है।
शिक्षा संस्कारों का विवरण
- अक्षरारम्भ प्रथम शिक्षा संस्कार है। अक्षरारंभ संस्कार के समय शिशु अक्षरलेखन और अंकलेखन सिखना आरंभ करता है।
- उपनयन संस्कार का अर्थ होता है – गुरु द्वारा शिष्य को अपने घर में लाना। वहाँ शिष्य शिक्षा नियमों का पालन करते हुए अध्ययन करता है। उन शिक्षा नियमों को ब्रह्मचर्य व्रत में शामिल किया गया है। प्राचीनकाल में शिष्य ब्रह्मचारी कहलाते थे।
- वेदारंभ संस्कार के अंतर्गत शिष्य अपने गुरू के आश्रम में ही वेदों का अध्ययन आरंभ करता था। प्राचीन शिक्षा में वेदों का महत्त्व उत्कृष्ट माना गया है।
- केशांत संस्कार में गुरूगृह में शिष्य का पहली बार क्षौरकर्म (केशों को काटने का कर्म) होता था। इसमें गोदान मुख्य कर्म होता था। इसलिए साहित्य ग्रंथों में इसका अन्य नाम ‘गोदान संस्कार’ मिलता है।
- समावर्तन संस्कार अंतिम शिक्षा संस्कार है। समावर्तन संस्कार का उद्देश्य गुरु के घर (आश्रम) से निकल कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना होता हैं। यह शिक्षा समाप्ति के बाद होता है। शिक्षा समाप्ति के बाद गुरू शिष्यों को उपदेश देकर घर भेजते हैं। ये उपदेश प्रायः जीवन के धर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे – सदा सत्य बोलो, धर्म का पालन करो, अपने अध्ययन पर घमंड मत करो।
गृहस्थ-संस्कार : विवाह
मनुष्य के गृहस्थ जीवन में एक ही संस्कार होता है – विवाह संस्कार। विवाह संस्कार से पूर्व ही मनुष्य वस्तुतः गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है। विवाह को पवित्र संस्कार माना गया है।
विवाह संस्कार में होनेवाले कर्मकांड
- विवाह संस्कार में विभिन्न प्रकार के कर्मकांड होते हैं। इनमें वाग्दान, मण्डपनिर्माण, वधूगृह में वरपक्ष का स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापना, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सप्तपदी, सिंदूरदान आदि सम्मिलित हैं।
- वाग्दान का अर्थ होता है – वर-वधू का एक-दूसरे को वचन देना। पाणिग्रहण का अर्थ है – कन्या का हाथ वर के हाथ में सौंपना। धान के लावे से किया जाने वाला हवन को लाजाहोम कहते हैं। सप्तपदी विवाह संस्कार में पति के साथ पत्नी का सात बार परिक्रमा करने के कर्मकांड को कहते हैं।
- प्रायः सभी जगह समान रूप से विवाह संस्कार का आयोजन होता है। फिर गर्भाधान आदि संस्कार दोहराए जाते हैं और जीवन चक्र घूमता रहता है।
मरणोपरांत संस्कार
मरणोपरांत एक संस्कार होता है – अंत्येष्टि संस्कार। मरने के बाद अंत्येष्टि संस्कार का अनुष्ठान होता है। अंत्येष्टि संस्कार का अर्थ शव को अग्नि में जलाना होता है। (कुछ विशेष परिस्थितियों में शव को भूमि के अंदर गाड़ा भी जाता है।)
- संस्कार भारतीय जीवन-दर्शन का एक महत्वपूर्ण उपादान (स्रोत) है।
- संस्कारों के पालन से व्यक्ति के चरित्र का निर्माण होता है।
यहाँ पर “भारतीय संस्काराः पाठ का अर्थ” समाप्त हुआ। आशा है कि आप इन इन्हें समझ कर याद कर लिए होंगे।
अब हम “भारतीय संस्काराः” अध्याय के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न और उनके उत्तर पढ़ेंगे। इससे आप भारतीय संस्काराः पाठ के तथ्यों को और अधिक सरलता से समझ पायेंगे और परीक्षा में इस पाठ से पूछे गए प्रश्नों का answer भी दे सकेंगे।
Class 10 Sanskrit Chapter 6 Question Answer
In the annual board examination of Sanskrit subject, 16 short answer type questions are asked, in which 1 or 2 questions from the chapter “Bhartiya Sanskarah” are definitely included. Out of these 16 questions, only 8 questions have to be answered and 2 marks are fixed for each of these questions.
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 6 भारतीय संस्काराः प्रश्न उत्तर
Class 10 Sanskrit Chapter 6 Bhartiya Sanskarah Question Answer
बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत पाठ 6 भारतीय संस्काराः प्रश्न उत्तर
अथवा, केशान्त संस्कार का वर्णन करें।
भारतीय संस्काराः पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
अथवा विवाह संस्कार में होने वाले कर्मकांडों के बारे में लिखें।
Bhartiya Sanskarah Question Answer PDF Download
अथवा, समावर्तन संस्कार का क्या महत्व है?
