Table of Contents (toc)
Class 10 Hindi (Prose) Chapter 1 श्रम विभाजन और जाति प्रथा Question Answer : Introduction
This article contains all VVI Question Answers (subjective) from Class 10th Hindi (Prose) Chapter-1 “Shram Vibhajan Aur Jati Pratha”. These questions are of short-answer type. This also contains the VVI sentences and their meaning.
Dear students, यहाँ बिहार बोर्ड गोधूलि भाग-2 कक्षा 10 हिन्दी गद्यखंड अध्याय 1 प्रश्न उत्तर के अन्तर्गत प्रकाशित इन सभी महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर और वाक्य-व्याख्या को पढ़-पढ़ कर याद करने का प्रयास करें। याद हो जाने के पश्चात् इन्हें अपने नोटबुक में लिखना न भूलें।
तो चलिए आज हम सबसे पहले श्रम विभाजन और जाति प्रथा अध्याय के लघु उत्तरीय प्रश्नों को पढ़ते हैं और तत्पश्चात कुछ महत्वपूर्ण वाक्य-व्याख्या को भी पढ़ कर याद करने का प्रयास करेंगे।
Class 10 Hindi (Prose) Chapter 1 Question Answer
In the annual board examination of Hindi subject, 10 short answer type questions are asked, in which at least 1 question from the chapter “Shram Vibhajan Aur Jati Pratha” may be included. Out of these 10 questions, only 5 questions have to be answered and 2 marks are fixed for each of these questions.
बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिन्दी गद्यखंड पाठ 1 श्रम विभाजन और जाति प्रथा Question Answer
1. ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है? उनके चिंतन एवं रचनात्मकता के तीन प्रेरक व्यक्ति कौन-कौन हैं?
उत्तर:- ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक पाठ के लेखक का नाम भीमराव अंबेडकर है। उनके चिंतन एवं रचनात्मकता के तीन प्रेरक व्यक्ति बुद्ध, कबीर और ज्योतिबा फुले है।
2. लेखक भीमराव अंबेडकर किस विडंबना की बात करते है? इस विडंबना का स्वरूप क्या है?
उत्तर: इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। लेखक भीमराव अंबेडकर इसी विडंबना की बात करते है। जातिवाद के पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। इनका प्रमुख आधार यह है कि आधुनिक युग में कार्यकुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है और चूँकि जाति प्रथा श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप हैं। इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।
3. अम्बेडकर के अनुसार जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं?
उत्तर: भीमराव अंबेडकर के अनुसार जातिवाद के पोषक इसके पक्ष में अनेक तर्क देते हैं। किंतु इनका प्रमुख तर्क यह है कि आधुनिक सभ्य समाज में कार्यकुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है। चूँकि श्रम विभाजन जाति प्रथा का ही दूसरा रूप है। इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।
4. श्रम विभाजन कैसे समाज की आवश्यकता है?
उत्तर:- जातिवाद के पोषकों के अनुसार श्रम विभाजन आधुनिक सभ्य समाज की आवश्यकता है। श्रम विभाजन होने पर अलग-अलग समुदाय के व्यक्ति अलग-अलग कार्य करते हैं। इस प्रकार समाज का प्रत्येक वर्ग अपने पेशे में कार्य-कुशलता प्राप्त कर लेता है।
श्रम विभाजन और जाति प्रथा Question Answer
5. जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक भीमराव अंबेडकर की प्रमुख आपत्तियाँ क्या है?
उत्तर:- जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक भीमराव अंबेडकर की प्रमुख आपत्तियाँ निम्नांकित है–
(i) जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन कर देती है और विभाजित वर्ग को एक दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है।
(ii) जाति प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की रूचि पर आधारित नहीं है। यह पेशा परिवर्तन की भी अनुमति नहीं देती है।
6. जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कही जा सकती हैं?
उत्तर: जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं कही जा सकती हैं, क्योंकि इस जाति प्रथा में श्रम विभाजन व्यक्ति की रूचि पर आधारित नहीं है। इसमें मनुष्य के प्रशिक्षण और निजी क्षमता पर विचार किए बिना गर्भधारण के समय से ही मनुष्य के पेशा का निर्धारण कर दिया जाता है।
7. कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर: कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रशिक्षित कर उसकी क्षमता को विकसित किया जाए। जिससे वह अपने पेशा या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके।
8. अम्बेदकर के अनुसार जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है?
उत्तर: हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती हैं, जो उसका पैतृक पेशा नहीं हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा Class 10 Question Answer
9. लेखक भीमराव अंबेडकर आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या किसे मानते हैं और क्यों?
उत्तर: जाति प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं है। इसलिए बहुत-से लोग निर्धारित कार्य को अरूचि के साथ केवल विवशतावश करते हैं। इससे व्यक्ति में कार्य-कुशलता नहीं आती है। इसे ही लेखक भीमराव अंबेडकर आज के उद्योगों में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या मानते हैं।
10. लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है?
उत्तर: लेखक भीमराव अंबेडकर ने पाठ में सामाजिक और आर्थिक पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है। जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन कर देती है और उन्हें एक दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच करार देती है। श्रम विभाजन मनुष्य स्वेच्छा पर आधारित नहीं होने के कारण कोई भी कार्य कुशलता पूर्वक नहीं होता है।
11. सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक भीमराव अंबेडकर ने किन विशेषताओं को आवश्यक माना है?
उत्तर: लेखक भीमराव अंबेडकर ने बताया है कि लोकतंत्र मूलतः सामाजिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने समाज में दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारा और अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान की भावना का होना आवश्यक माना है।
12. लेखक भीमराव अंबेडकर ने आदर्श समाज का स्वरूप कैसा बताया है?
उत्तर:- लेखक भीमराव अंबेडकर ने आदर्श समाज का स्वरूप स्वतंत्रता, समानता और भातृत्व पर आधारित बताया है। ऐसे समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए, जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचरित हो सके। ऐसे समाज के बहुविध हितों में सबका भाग होना चाहिए और सब को उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।
श्रम विभाजन और जाति प्रथा Class 10 PDF Download
13. लेखक के अनुसार आदर्श समाज में किस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए?
उत्तर: लेखक (भीमराव अंबेडकर) के अनुसार आदर्श समाज में ऐसी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचरित हो सके।
14. “जाति प्रथा के आधार पर श्रम विभाजन स्वाभाविक नहीं है।” कैसे?
उत्तर:- जाति प्रथा के आधार पर श्रम विभाजन स्वाभाविक नहीं है। क्योंकि यह श्रम विभाजन व्यक्ति की रूचि या स्वेच्छा पर आधारित नहीं है। इसमें मनुष्य के प्रशिक्षण और निजी क्षमता पर विचार किए बिना गर्भधारण के समय से ही उसके पेशा का निर्धारण कर दिया जाता है।
15. जाति प्रथा के दूषित सिद्धांत क्या है?
उत्तर:- जाति प्रथा के दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किये बिना, माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार, गर्भधारण के समय से ही उसके पेशा का निर्धारण कर दिया जाता है।
यहाँ पर श्रम विभाजन और जाति प्रथा पाठ के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर की जानकारी पूर्ण हुई। आशा है कि आप इन सभी प्रश्नों को याद कर लिए होंगे।
अब हम श्रम विभाजन और जाति प्रथा पाठ से कुछ महत्वपूर्ण वाक्यों और उनके व्याख्या का अध्ययन कर याद करने का प्रयास करेंगे।
कक्षा-10 हिंदी गद्यखंड श्रम विभाजन और जाति प्रथा पाठ की महत्वपूर्ण वाक्य-व्याख्या
यहाँ श्रम विभाजन और जाति प्रथा पाठ से कुल 4 महत्वपूर्ण वाक्य-व्याख्या प्रस्तुत किए गए हैं। बिहार बोर्ड मैट्रिक की हिन्दी विषय की वार्षिक परीक्षा में ऐसे प्रत्येक प्रश्न के लिए पाँच अंक निर्धारित रहता है और इनका उत्तर लगभग 100 शब्दों में दिया जाता है।
1. यह विडंबना की ही बात है कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्ति ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक पाठ से संकलित है। इसके लेखक भीमराव अम्बेडकर है। इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। लेखक इसे विडंबना की बात बतलाते है। क्योंकि आज के आधुनिक युग में, जहाँ उद्योग-धंधों की प्रक्रिया और तकनीक में निरंतर विकास हो रही है, जातिवाद का कोई स्थान नहीं रहना चाहिए। फिर भी जातिवाद के पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। जिनमें एक प्रमुख आधार यह है कि आधुनिक युग में कार्यकुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है और चूँकि जाति प्रथा श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप हैं। इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन भारत में श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन भी हो जाता है और विभाजित वर्ग को एक दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच करार दिया जाता है। निश्चय ही यह व्यवस्था विडंबना का विषय है।
2. किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचरित हो सके।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्ति ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक पाठ से संकलित है। इसके लेखक भीमराव अम्बेडकर है। लेखक ने आदर्श समाज की व्याख्या करते हुए बताया है कि आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचरित हो सके। अर्थात देश में घटने वाली हर घटना की लाभ-हानि का प्रभाव समाज के प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ना चाहिए। किसी भी सरकारी योजना का लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुँचनी चाहिए। समाज का कोई भी व्यक्ति अपने-आप को उपेक्षित या दुसरों से अलग न समझे। इसके लिए सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए।
श्रम विभाजन और जाति प्रथा Class 10
3. दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप है, और इसी का दुसरा नाम लोकतंत्र है।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्ति ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक पाठ से संकलित है। इसके लेखक भीमराव अम्बेडकर है। लेखक ने बताया है कि आदर्श समाज का स्वरूप स्वतंत्रता, समानता और भातृत्व पर आधारित होता है। इसमें इतनी गतिशीलता होती है कि प्रत्येक वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचरित हो सके। सभी लोग एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। ऐसे समाज के बहुविध हितों में सबका भाग होता है और सब एक साथ उनकी रक्षा के प्रति सजग रहते हैं। इस तरह समाज में लोग वैसे ही रहते हैं जैसे दूध और पानी का मिश्रण होता है। अर्थात् सभी लोग एक-दूसरे से घुल-मिल कर रहते हैं। यही भाईचारे का वास्तविक रूप है, और इसी का दुसरा नाम लोकतंत्र है।
4. लोकतंत्र मूलतः सामाजिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्ति ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक पाठ से संकलित है। इसके लेखक भीमराव अम्बेडकर है। लेखक इस पंक्ति द्वारा स्पष्ट करना चाहता है कि लोकतंत्र मूलतः हमारे सामाजिक जीवन का ही एक हिस्सा है। यह समाज के लोगों के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। एक आदर्श समाज के जो गुण होते हैं, वहीं सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करते हैं। समाज में लोगों का आपस में मिलजुल रहना ही सच्चे लोकतंत्र की निशानी है। इसके लिए आवश्यक है कि लोगों में एक-दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना हो और अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो।
---------- समाप्त ----------