स्वामी दयानन्दः पाठ का अर्थ Class 10 Sanskrit Chapter 9 Question Answer and Notes

Prabhakar
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Class 10 Sanskrit Chapter 9 Question Answer
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स्वामी दयानन्दः पाठ का अर्थ Class 10 Sanskrit Chapter 9 Question Answer and Notes : Introduction

This article contains all VVI Question Answers (2 marks each) from Class 10th Sanskrit book “Piyusham Part-2” Chapter 9 “Swami Dayananda”. This also contains the hindi meaning of Swami Dayananda chapter.

Dear students, the team of NextGen Study (#1 Online Study Portal for Bihar Board Exams) has provided the Class 10 Sanskrit Chapter 9 Question Answer here. Before this you will see the hindi meaning of Swami Dayananda chapter.


प्रिय विद्यार्थियों, बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत पाठ 9 प्रश्न उत्तर को पढ़ने से पहले आपको स्वामी दयानन्दः पाठ का अर्थ जानना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि इस पाठ को हिन्दी में पढ़ने के पश्चात् ही आप इसमें लिखी बातों को अधिक आसानी से याद कर पाएँगे।
इसलिए आज हम सबसे पहले स्वामी दयानन्दः पाठ का अर्थ हिन्दी में पढ़ेंगे और तत्पश्चात प्रश्न उत्तर को भी पढ़ कर याद करने का प्रयास करेंगे।


स्वामी दयानन्दः पाठ का अर्थ (हिन्दी में)

संस्कृत विषय तब तक कठिन लगता हैं जब तक कि उसका हिन्दी अनुवाद हमें पता नहीं रहता। यदि पाठ कोई कथा हो तो उसका हिन्दी में अनुवाद कर पढ़ने पर वह बहुत रोचक लगने लगता है। स्वामी दयानन्दः पाठ में महर्षि दयानंद सरस्वती के बचपन से लेकर मृत्यु तक का संक्षिप्त विवरण है। इस पाठ में बताया गया है कि कैसे वे संन्यास की ओर उन्मुख हुए और समाज कल्याण के लिए कौन-कौन-से कार्य किए। यहाँ हम स्वामी दयानन्दः पाठ का हिन्दी अनुवाद करते हुए इसके अर्थ को भी समझेंगे। परंतु इन सबसे पहले स्वामी दयानन्दः पाठ की कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त करते हैं।


कक्षा 10 संस्कृत पाठ 9 नोट्स

  • स्वामी दयानंद सरस्वती आधुनिक भारतीय समाज और शिक्षा के महान सुधारक है।
  • स्वामी दयानंद ने आर्यसमाज की स्थापना कर भारतीय समाज में अभूतपूर्व योगदान दिया।
  • भारतवर्ष में राष्ट्रीयता का बोध कराना भी स्वामी दयानंद का विशेष कार्य रहा।
  • दयानंद ने समाज में फैले अनेक दूषित प्रथाओं का खंडन कर शुद्ध तत्व ज्ञान का प्रचार किया।
  • इस पाठ में स्वामी दयानंद के परिचय तथा समाज के उद्धार में उनके योगदान को निरूपित किया गया है।

Class 10 Sanskrit Chapter 9 Notes

  • मध्य काल में विभिन्न कुरीतियों ने भारतीय समाज को दूषित कर दिया था।
  • प्राचीन समाज में जाति-आधारित असमानता, अस्पृश्यता, धार्मिक कार्यों में आडंबर, महिलाओं के लिए शिक्षा की कमी, विधवाओं की निंदनीय स्थिति और शिक्षा की अव्यापकता जैसे कई दोष थे। इसलिए अनेक दलितों ने हिंदू समाज को अस्वीकार कर धर्मांतरण स्वीकार कर लिया।
  • उन्नीसवीं सदी के ऐसे कठिन समय में कुछ धार्मिक पुनरुत्थानवादी, सत्य की खोज करने वाले और समाज की असमानताओं को दूर करने वाले महापुरुष भारतवर्ष में प्रकट हुए। उनमें निश्चित रूप से स्वामी दयानंद का स्थान उनके विचारों की व्यापकता और समाज कल्याण के दृढ़ संकल्प के कारण सबसे ऊपर है।

Class 10 Sanskrit Chapter 9 Hindi Anuvad

  • स्वामी दयानंद का जन्म 1824 में गुजरात के टंकारा नामक गाँव में हुआ था।
  • स्वामी दयानंद के बचपन का नाम मूलशंकर था।
  • स्वामी दयानंद (मूलशंकर) की शिक्षा का प्रारंभ संस्कृत शिक्षण से हुई।
  • स्वामी दयानंद का परिवार शिवोपासक था। उनके परिवार में शिवरात्रि का पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता था।
  • शिवरात्रि का महान पर्व स्वामी दयानन्द के लिए उद्बोधक सिद्ध हुआ।
  • शिवरात्रि पर्व की रात्रि-जागरण के समय मूलशंकर ने देखा कि चूहे भगवान शिव के विग्रह पर चढ़ कर विग्रह को अर्पित नैवेद्य को खा कर रहे हैं।
  • मूलशंकर ने सोचा कि विग्रह तो साधारण है। वास्तव में, भगवान प्रतिमा में नहीं है।
  • मूलशंकर उसी समय रात्रि जागरण को छोड़कर घर चले गये और तभी से उनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति अनास्था उत्पन्न हो गई।
  • मूलशंकर को मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था उत्पन्न होने के दो वर्ष बाद उनकी प्रिय बहन की मृत्यु हो गई।
  • अपनी प्रिय बहन की मृत्यु के बाद मूलशंकर में वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई।
  • घर छोड़कर, विभिन्न विद्वान संतों और सत्पुरुषों की संगति का आनंद लेते हुए, वह मथुरा में अंधे विद्वान विरजानन्द के समीप पहुँचे। उन्होंने आर्ष नामक ग्रन्थ का अध्ययन करना प्रारम्भ किया।
  • विरजानंद के उपदेशों के अनुसार दयानंद ने अपना जीवन वैदिक धर्म के प्रचार और सत्य के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने सर्वत्र धर्म के पाखण्ड का भी खण्डन किया। अनेक विद्वान उनसे पराजित हुए और उनसे दीक्षित हुए।

स्वामी दयानन्दः पाठ का हिन्दी अनुवाद

  • स्वामी दयानंद ने विभिन्न समाज-सुधारकों के साथ मिलकर स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, मूर्तिपूजा के खंडन, अस्पृश्यता और बाल-विवाह निवारण के लिए अत्यधिक प्रयत्न किया।
  • स्वामी दयानंद ने अपने सिद्धांतों को संकलित कर 'सत्यार्थ-प्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना राष्ट्रभाषा 'हिंदी' में करके अपने अनुयायियों पर महान उपकार किया।
  • वेदों के प्रति सभी धर्मों के अनुयायियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए स्वामी दयानंद ने वेदों के भाष्यों को संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखा।
  • स्वामी दयानंद ने प्राचीन शिक्षा पद्धति के दोषों को उजागर कर नवीन शिक्षा पद्धति का सुझाव दिया।
  • स्वामी दयानंद ने अपने सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिए 1875 ई० में मुम्बई में 'आर्यसमाज' की स्थापना करके अपने अनुयायियों के लिए मूर्त रूप से समाज सुधार के उद्देश्यों को प्रकट किया।

स्वामी दयानन्दः पाठ का हिन्दी अर्थ

  • वर्तमान समय में आर्यसमाज की शाखा-प्रशाखा देश और विदेश के प्रायः सभी नगरों में विद्यमान है। सभी जगह वे समाज और शिक्षा के दोषों को दूर करते हैं।
  • स्वामी दयानंद की मृत्यु 1883 ई० में हुई।
  • स्वामी दयानंद की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों द्वारा गुरुकुल शिक्षा पद्धति में दयानंद एंग्लो वैदिक (डी० ए० वी०) विद्यालय समूह की शुरुआत की गई।
  • वर्तमान शिक्षा पद्धति और समाज के उन्नयन में आर्यसमाज और स्वामी दयानंद का योगदान स्मरणीय है।

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  • स्वामी दयानन्द की जन्म और मृत्यु उन्नीसवीं शताब्दी में हुई।
  • स्वामी दयानन्द का पूरा नाम स्वामी दयानन्द सरस्वती है।

यहाँ पर स्वामी दयानन्दः पाठ का अर्थ समाप्त हुआ। आशा है कि आप इन इन्हें समझ कर याद कर लिए होंगे।

अब हम “स्वामी दयानन्दः” अध्याय के महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न और उनके उत्तर पढ़ेंगे। इससे आप स्वामी दयानन्दः पाठ के तथ्यों को और अधिक सरलता से समझ पायेंगे और परीक्षा में इस पाठ से पूछे गए प्रश्नों का answer भी दे सकेंगे।



Class 10 Sanskrit Chapter 9 Question Answer

In the annual board examination of Sanskrit subject, 16 short answer type questions are asked, in which 1 or 2 questions from the chapter “Swami Dayananda” are definitely included. Out of these 16 questions, only 8 questions have to be answered and 2 marks are fixed for each of these questions.


कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 9 स्वामी दयानन्दः प्रश्न उत्तर


1. मध्यकाल में भारतीय समाज क्यों दूषित हो गया था?
उत्तर:- मध्यकाल में भारतीय समाज में अनेक कुरीतियाँ; जैसे – जातिवाद, छुआ-छूत, बाल-विवाह, धार्मिक कार्यों में आडंबर, स्त्रियों के लिए शिक्षा की कमी, विधवाओं की निंदनीय स्थिति और शिक्षा की अव्यापकता आदि व्याप्त थी। इन सभी के कारण, मध्यकाल में भारतीय समाज दूषित हो गया था।

2. मध्यकाल में भारतीय समाज में वर्तमान कुरीतियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:- मध्यकाल में भारतीय समाज में अनेक कुरीतियाँ व्याप्त थी, जैसे – जातिवाद, छुआ-छूत, बाल-विवाह, धार्मिक कार्यों में आडंबर, स्त्रियों के लिए शिक्षा की कमी, विधवाओं की निंदनीय स्थिति और शिक्षा की अव्यापकता आदि। इसके कारण अनेक दलितों ने हिंदू समाज को अस्वीकार कर दुसरे धर्म को अपना लिया।

3. प्राचीन समाज में कौन-कौन से प्रमुख दोष थे?
उत्तर:- मध्यकाल में भारतीय समाज अनेक गलत रीति-रिवाजों के कारण दूषित हो गया था। प्राचीन समाज में जाति-आधारित असमानता, अस्पृश्यता, धार्मिक कार्यों में आडंबर, स्त्रियों के लिए शिक्षा की कमी, विधवाओं की निंदनीय स्थिति और शिक्षा की अव्यापकता जैसे कई प्रमुख दोष थे। इसके कारण ही अनेक दलितों ने हिंदू समाज को अस्वीकार कर धर्मांतरण स्वीकार कर लिया।

4. स्वामी दयानंद कौन थे ? समाज सुधार के लिए उन्होंने क्या किया?
उत्तर:- स्वामी दयानंद एक महान समाज-सुधारक सन्त थे। इनका जन्म 1824 में गुजरात के 'टंकारा' नामक गांव के एक कर्मकाण्डी परिवार में हुआ था। इन्होंने विभिन्न समाज-सुधारकों के साथ मिलकर स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, मूर्तिपूजा के खंडन, अस्पृश्यता और बाल-विवाह निवारण के लिए अत्यधिक प्रयत्न किया। पुरातन शिक्षा पद्धति के दोषों को उजागर कर नवीन शिक्षा पद्धति का सुझाव दिया। अपने सिद्धांतों को लोगों के बीच पहुँचाने के लिए 'आर्यसमाज' की स्थापना की। वेदों का ज्ञान आम जनमानस को भी हो, इसके लिए वेदों के भाष्यों को संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखा। उन्होंने हमेशा धार्मिक आडंबरों का विरोध किया और अपना जीवन वैदिक धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए समर्पित कर दिया।

Class 10 Sanskrit Chapter 9 Swami Dayananda Question Answer


5. समाज के उन्नयन में स्वामी दयानंद के योगदानों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:- समाज के उन्नयन में स्वामी दयानंद का अनेक योगदान रहा है। उन्होंने मध्यकाल में भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के उद्देश्य से स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, मूर्तिपूजा खंडन और बाल-विवाह को रोकने, आदि का प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने 1875 में 'आर्यसमाज' की स्थापना की। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को भी सुधारने का प्रयास किया। उन्होंने हमेशा धार्मिक आडंबरों का विरोध किया और अपना जीवन वैदिक धर्म के प्रचार और सत्य के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया।

6. अपने किन गुणों के कारण उन्नीसवीं सदी के समाज सुधारकों में स्वामी दयानन्द श्रेष्ठ माने जाते है?
उत्तर:- विषम परिस्थिति में, उन्नीसवीं सदी के ऐसे कठिन समय में, कुछ धार्मिक पुनरुत्थानवादी, सत्य की खोज करने वाले और समाज की असमानताओं को दूर करने वाले महापुरुष भारतवर्ष में प्रकट हुए। परंतु अपने विचारों की व्यापकता और समाज कल्याण के दृढ़ संकल्प के कारण उन्नीसवीं सदी के समाज सुधारकों में स्वामी दयानन्द श्रेष्ठ माने जाते है।

7. शिवरात्रि महापर्व स्वामी दयानन्द के लिए उद्बोधक हुआ, कैसे?
उत्तर:- एक बार शिवरात्रि महापर्व के रात्रि-जागरण में स्वामी दयानन्द ने देखा कि चूहे भगवान शिव की मूर्ति पर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहे हैं। इससे उन्हें यह विश्वास हो गया कि मूर्ति एक साधारण वस्तु है और मूर्ति में भगवान नहीं होते हैं। वे उसी समय रात्रि-जागरण को छोड़ कर घर चले गए। बाद में, वेदों का अध्ययन कर सत्य और वैदिक धर्म का प्रचार करने लगे। इस प्रकार शिवरात्रि महापर्व स्वामी दयानन्द के लिए उद्बोधक हुआ।

8. स्वामी दयानन्द पर रात्रि जागरण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:- एक बार शिवरात्रि महापर्व के रात्रि-जागरण में स्वामी दयानन्द ने देखा कि चूहे भगवान शिव की मूर्ति पर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहे हैं। इससे उन्हें यह विश्वास हो गया कि मूर्ति एक साधारण वस्तु है और वास्तव में, मूर्ति में भगवान नहीं होते हैं। वे उसी समय रात्रि-जागरण को छोड़ कर घर चले गए। इस घटना का स्वामी दयानन्द पर यह प्रभाव पड़ा कि उनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति कोई आस्था नहीं रही और वे मूर्ति पूजा के विरोधी बन गए।

Swami Dayananda Sanskrit Chapter 9 Question Answer in Hindi


9. स्वामी दयानंद को मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था कैसे हुई?
उत्तर:- स्वामी दयानंद का परिवार शिवोपासक था। उनके परिवार में शिवरात्रि का पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता था। एक बार शिवरात्रि पर्व की रात्रि-जागरण के समय दयानंद ने देखा कि चूहे भगवान शिव के विग्रह पर चढ़ कर विग्रह को अर्पित नैवेद्य को खा कर रहे हैं। इससे उन्हें यह विश्वास हो गया कि मूर्ति एक साधारण वस्तु है और वास्तव में, मूर्ति में भगवान नहीं होते हैं। दयानंद उसी समय रात्रि जागरण को छोड़कर घर चले गये और तभी से उनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति अनास्था उत्पन्न हो गई।

10. स्वामी दयानंद मूर्तिपूजा के विरोधी कैसे बने?
उत्तर:- स्वामी दयानंद का परिवार शिवोपासक था। उनके परिवार में शिवरात्रि का पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता था। एक बार शिवरात्रि के रात्रि-जागरण के समय दयानंद ने देखा कि भगवान शिव के विग्रह पर चढ़ाए गए प्रसाद को मूषक खा कर रहा है। तब उन्होंने सोचा कि मूर्ति में अगर भगवान होते तो वे चूहे को जरूर भगाते। उनके समझ में आ गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते हैं। वे उसी समय रात्रि-जागरण को छोड़ कर घर चले गए। इस घटना का स्वामी दयानन्द पर यह प्रभाव पड़ा कि उनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति कोई आस्था नहीं रही और वे मूर्ति पूजा के विरोधी बन गए।

11. मूलशंकर में वैराग्य भाव कब उत्पन्न हुआ?
उत्तर:- शिवरात्रि महापर्व के रात्रि-जागरण में चूहे को भगवान शिव की मूर्ति पर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खाते देखकर मूलशंकर के मन में मूर्ति पूजा के प्रति अनास्था उत्पन्न हुई। उन्हें विश्वास हो गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते हैं। इस घटना के दो वर्ष बाद उनकी प्रिय बहन की मृत्यु हो गई, जिसके बाद मूलशंकर में वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई।

स्वामी दयानन्दः पाठ के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर


12. मूलशंकर में वैराग्य भाव कैसे उत्पन्न हुआ?
उत्तर:- शिवरात्रि महापर्व के रात्रि-जागरण में चूहे को भगवान शिव की मूर्ति पर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खाते देखकर मूलशंकर के मन में मूर्ति पूजा के प्रति अनास्था उत्पन्न हुई। उन्हें विश्वास हो गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते हैं। इस घटना के दो वर्ष बाद उनकी प्रिय बहन की मृत्यु हो गई, जिसके बाद मूलशंकर में वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई।

13. स्वामी दयानंद ने अपने सिद्धांतों के संकलन के लिए क्या किया?
उत्तर- स्वामी दयानंद ने अपने सिद्धांतों के संकलन के लिए 'सत्यार्थ-प्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना हिंदी भाषा में की और अपने अनुयायियों पर उपकार किया। इसके साथ ही वेदों के प्रति सभी धर्म के अनुयायियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने स्वयं वेदों के भाष्यों को संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखे।

14. स्वामी दयानंद की शिक्षा-व्यवस्था का वर्णन करें।
उत्तर- स्वामी दयानंद ने वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने सिद्धांतों के संकलन के लिए 'सत्यार्थ-प्रकाश' नामक ग्रंथ की रचना हिंदी भाषा में की। इसके साथ ही वेदों के प्रति सभी धर्म के अनुयायियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने वेदों के उपदेशों को संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखा। उन्होंने प्राचीन शिक्षा-पद्धति को दोषमुक्त करने का प्रयास किया।

15. स्वामी दयानन्द ने समाज की किन कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया?
उत्तर- मध्यकाल में भारत में अनेक कुरीतियाँ फैली हुई थी। जिसके कारण समाज के छोटे और वंचित वर्ग के लोग धर्मपरिवर्तन करने लगे थे। स्वामी दयानंद ने उस समय धार्मिक आडंबरता, अस्पृश्यता, स्त्री-अशिक्षा, विधवाओं की दुर्गति और बाल-विवाह आदि कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, मूर्तिपूजा खंडन और बाल-विवाह निवारण के लिए प्रयत्न किया।

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16. स्वामी दयानंद ने वैदिक धर्म को बढ़ावा देने के लिए क्या किया?
उत्तर:- स्वामी दयानंद ने वैदिक धर्म को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन वैदिक धर्म के प्रचार और सत्य के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। स्वामी दयानंद ने वेदों के प्रति सभी धर्म के अनुयायियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए स्वयं ही वेदों के भाष्यों को संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखे। उन्होंने छुआ-छूत, मूर्ति-पूजा तथा धार्मिक आडंबरों का पुरजोर विरोध किया जिससे धर्म परिवर्तन की दर में कमी आई।

17. स्वामी दयानन्द एक महान समाज सुधारक थे, कैसे?
उत्तर:- मध्यकाल में भारत में अनेक कुरीतियाँ फैली थी, जिससे दलित वर्ग के लोग धर्मांतरण करने लगे। ऐसे कठिन समय में, स्वामी दयानंद ने विभिन्न समाज-सुधारकों के साथ मिलकर स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, मूर्तिपूजा खंडन, छूआ-छूत और बाल-विवाह को रोकने, आदि के लिए अत्यधिक प्रयत्न किया। उन्होंने अपने विचारों को समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को तक पहुँचाने के लिए 'आर्यसमाज' की स्थापना की। वेदों का ज्ञान आम जनमानस को भी हो, इसके लिए वेदों के भाष्यों को संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखा। पुरातन शिक्षा पद्धति के दोषों को उजागर कर नवीन शिक्षा पद्धति का सुझाव दिया। इनके द्वारा किए गए प्रयासों का प्रभाव हमें आज भी देखने को मिलता है। अतः हम कह सकते हैं कि स्वामी दयानन्द एक महान समाज सुधारक थे।

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